
लखनऊ के हजरतगंज थाने में एक रेप के आरोपी को ठंडी हवा देने के लिए हवालात के बाहर पंखा लगाना, अब सिर्फ “मानवता” नहीं, “ह्यूमिडिटी वाली ह्यूमर” बन चुका है। तस्वीर वायरल हुई, और सोशल मीडिया ने कहा –
“ये कौन सा VIP जेल पैकेज है भैया?”
तस्वीर आई, वायरल हुई, और जनता पिघल गई
जैसे ही सलाखों के पीछे बैठे अभिषेक सिंह की फोटो सामने आई, बाहर लगा पंखा देखकर जनता के पसीने छूट गए।
किसी ने लिखा — “151 वालों को तो टॉर्चर मिलता है, और ये साहब आराम फरमा रहे हैं।”
कुछ ने तो ये भी पूछा — “क्या हवालात में अब कूलर, चाय और Netflix भी शुरू होने वाला है?”
पुलिस बोली – ‘इंसानियत है सर, इंसानियत’
इंस्पेक्टर साहब का बयान आया कि भीषण गर्मी है, अगर आरोपी को कुछ हो गया तो दोष पुलिस का ही होगा। तो सोचा, थोड़ी ठंडी हवा दे देते हैं, सज़ा बाद में देख लेंगे। हमने मानवता के तहत पंखा लगाया है, न्यायिक प्रक्रिया अभी भी गर्म है।
जनता बोली – ‘हमसे ना हो पाएगा ये विश्वास’
अमन गुप्ता – “भाई! गरीब चोरी करे तो हवालात में उबलता है, रसूखदार रेप करे तो हवा खाता है।”
शिवांश शर्मा-“सलाखों के पीछे AC की हवा में कानून पिघलता है”
सौरभ सिंह- “ये जेल है या जेंटलमेन लॉन्ज?”
सवाल वही पुराना: क्या कानून सबके लिए बराबर है?
जब हवालात में हवा मिल रही हो और बाहर न्याय सूख रहा हो, तो जनता कहती है — “न्याय व्यवस्था अब बस गर्मियों में ही पसीना नहीं बहा रही, भरोसा भी बहा रही है।”
अगर VIP ट्रीटमेंट ही इंसानियत है, तो गरीब की गलती सिर्फ ये है कि वो VIP नहीं है। हवालात में पंखा चल रहा है, लेकिन जनता के दिमाग का पारा अभी भी हाई वोल्टेज पर है।