
देश की संसद में मानसून का सत्र तो जारी है, लेकिन गर्मी असली SIR (Special Intensive Revision) से पैदा हो रही है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शुक्रवार को जैसे ही SIR लिखा पोस्टर फाड़ा, राजनीतिक तापमान और बढ़ गया।
“ये वोटबंदी है, नोटबंदी के बाद की अगली स्कीम!”
खड़गे ने संसद में SIR को ‘वोटर सफाई अभियान’ बताते हुए कहा:
“दलित, आदिवासी, पिछड़े, मुसलमान और ग़रीबों का नाम काटा जा रहा है… और चुनाव आयोग मोदी सरकार का साथ दे रहा है।”
उधर, चुनाव आयोग संविधान की धारा 324 की कॉपी लेकर मैदान में उतरा और कहा:
“हमने तो बस जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत काम किया है भाई! 2004 के बाद से लिस्ट रीसेट ही नहीं हुई थी।”
EC का जवाब: क़ानून पढ़िए, भावनाएं नहीं
चुनाव आयोग ने प्रेस नोट में बताया कि:
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SIR कोई नई चीज़ नहीं है, 1952 से कई बार हो चुका है।
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2025 में इसलिए ज़रूरी है क्योंकि पिछले 20 सालों में शहरीकरण, पलायन और “वन नेशन, टू वोटर IDs” जैसी स्थिति बन गई है।
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आयोग ने RPA 1950 की धारा 21 का हवाला देकर कहा – “ये तो रूटीन है, साजिश नहीं।”
और हाँ, बिहार को लेकर EC ने ये भी कहा:
“2003 की वोटर लिस्ट आधार है, तब का नाम है तो अभी चिंता न करें, आपका वोट ‘सुरक्षित’ है।”
विपक्ष का आरोप:
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मतदाता सूची की आड़ में ‘नागरिकता की चोरी’।
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बीजेपी-आरएसएस पर संविधान बदलने की मंशा का आरोप।
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“SIR” = “Selectively Identified Removal”, यानी जो वोट BJP को न पड़ें, उन्हें हटाओ।
सत्तापक्ष का जवाब:
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EC को निशाना बनाना संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा गिराना है।
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SIR = “Systematic Inclusion & Revision”।
राजनीतिक बाउंड्री के पार या नो बॉल?
मंत्री बोले – “खड़गे जी ने पोस्टर फाड़ा, लोकतंत्र नहीं बचाया। ये प्रेस कांफ्रेंस नहीं, प्रेस-कटर है।”
कांग्रेस नेता बोले – “EC BJP की E-branch बन गई है। लोकतंत्र बचाने के लिए शोर ज़रूरी है, और कभी-कभी पोस्टर फाड़ना भी।”
इतिहास दोहरा रहा है? या डिलीट कर रहा है?
आखिरी बार ऐसा बड़ा पुनरीक्षण 2004 में हुआ था।
अब 2025 में हो रहा है – ठीक तब जब बिहार चुनाव नज़दीक हैं, और 2026 में कई राज्यों में विधानसभा चुनाव।