
भगवान शिव केवल सनातन धर्म के नहीं, बल्कि समस्त मानवता के आराध्य हैं। वे “अज्ञेय” हैं — जिनका कोई एक रूप नहीं, कोई एक मत नहीं। उनका स्वरूप समावेशी है। डमरू बजाते, जटाजूटधारी, तांडव करते शिव — वे किसी विशेष संप्रदाय के प्रतीक नहीं बल्कि ब्रह्मांडीय चेतना के आधार हैं।
शिव सबके क्यों हैं?
-
शिव को कोई भी जात-पात पूछे बिना पूज सकता है।
-
वो श्मशान में भी मिलते हैं और मंदिरों में भी।
-
भांग चढ़ाते नागा भी उनके भक्त हैं और दीप जलाती गृहिणी भी।
-
वो अघोरी के गुरु हैं और गृहस्थ के सहचर भी।
शिव के लिए न कोई अमीर-गरीब, न कोई ऊँच-नीच। सिर्फ भक्ति ही शिव से जुड़ने का माध्यम है।
भक्तों की भाषा एक — शिव का नाम
सच्चा शिवभक्त जानता है कि भोलेनाथ जात-पात नहीं देखते। इतिहास गवाह है कि रावण से लेकर भीलनी तक, चांडाल से लेकर ब्राह्मण तक — सभी ने शिव की भक्ति की और आशीर्वाद पाया।
आधुनिक समाज के लिए शिव का संदेश
आज जब समाज धर्म, जाति और वर्गों में बँटा है — शिव हमें जोड़ने का काम करते हैं। वे हमें सिखाते हैं:
“धर्म वही जो सबको साथ लेकर चले।”
शिव का ध्येय है एकता, समरसता और प्रेम।
शिव के द्वार पर सब बराबर हैं
भोलेनाथ के दरबार में न कोई छोटा है, न बड़ा। उनके लिए हर दिल — मंदिर है। अगर दिल में भक्ति है तो शिव वहीं बसते हैं।