“जब सेक्स और सेंसरशिप मिले स्टेज पर” – रियाद में ‘हराम’ ह्यूमर का महोत्सव!

अजमल शाह
अजमल शाह

सोचिए, अगर कोई आपसे कहे कि सऊदी अरब में लोग स्टैंडअप कॉमेडी शो में बैठकर सेक्स, पत्नियों और ट्रांसजेंडर लोगों पर चुटकुले सुन रहे हैं, तो आप कहेंगे – “हराम बात मत करो!
लेकिन रियाद कॉमेडी फेस्टिवल 2025 में ये बिल्कुल हुआ… और तालियों के साथ हुआ!

सऊदी सरकार पर चुटकुले? नो, थैंक यू!

डेव चैपल, बिल बर्र और ओमिद जलीली जैसे ग्लोबल स्टार्स ने स्टेज तो संभाल लिया, लेकिन सऊदी सरकार पर कोई पंच नहीं मारा।
ह्यूमन राइट्स वॉच की माने तो ये फेस्टिवल असल में एक “री-ब्रांडिंग इवेंट” है – ह्यूमर के नाम पर सियासी चुप्पी की नुमाइश!

हाँ, चुटकुले थे – लेकिन क्राउन प्रिंस नहीं, सिर्फ क्राउन (हेयरलाइन) पर।

डॉलर का दर्द या डेमोक्रेसी का डर?

जैक व्हाइटहॉल और केविन हार्ट जैसे कलाकारों को परफॉर्म करने के लिए मल्टी-मिलियन डील्स ऑफर की गईं। कई कॉमेडियन जैसे शेन गिलिस और अत्सुको ओकात्सुका ने ये कहकर मना कर दिया कि “अभिव्यक्ति की आज़ादी पर बंधी कॉमेडी, सिर्फ़ एक्टिंग होती है, ह्यूमर नहीं।”

लेकिन कुछ कलाकारों ने कहा – “हमें सिर्फ़ हँसाना है, हिला नहीं सकते सरकार को!

हिजाब, ड्राइविंग और ‘हराम’ ह्यूमर

ओमिद जलीली ने हिजाब से लेकर ड्राइविंग तक पर चुटकुले सुनाए, और कुछ महिलाओं ने हँसकर ताली भी बजाई। रूही (काल्पनिक नाम) कहती हैं – “ये माहौल मैंने पहले कभी नहीं देखा। लेकिन यहां पर इन बातों पर ध्यान दिया तो रह नहीं सकते।

Jamal Khashoggi की बरसी पर महोत्सव!

कॉमेडी शो की टाइमिंग भी सवालों के घेरे में है – ये फेस्टिवल 2 अक्टूबर को जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या की बरसी के आस-पास हुआ।
मार्क मैरोन ने कटाक्ष करते हुए कहा – “जो लोग हड्डियों को सूटकेस में डालते हैं, वही अब ह्यूमर की टिकट बाँट रहे हैं।”

स्टैंडअप के नाम पर ‘सिट डाउन’

 “कॉमेडी का मतलब है सत्ता के सामने सच बोलना। लेकिन यहां चुटकुले सिर्फ़ सुरक्षित ज़ोन में हैं।”
और इस फेस्टिवल के कॉन्ट्रैक्ट्स?

“शाही परिवार और मज़हब पर कोई ‘जोकरपंती’ नहीं चलेगी!”

सऊदी का “विजन 2030”: हँसाओ, मगर सोचने मत दो

सऊदी सरकार का उद्देश्य साफ़ है – मनोरंजन को बढ़ावा देना, लेकिन बिना सवालों की गूंज के। स्टैंडअप कॉमेडी हो या WWE रेसलिंग, सब कुछ ब्रांडिंग के तहत।

आख़िर में सवाल ये नहीं कि चुटकुले कैसे थे…

सवाल ये है कि वो किन बातों पर नहीं थे। चलिए, अब ये मत कहिएगा कि “सऊदी में कुछ बदल नहीं रहा…” बदल तो रहा है, बस ज़ुबान से नहीं, स्क्रिप्ट से!

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