राजनीति की असली फिल्म: नेता गुप्त दोस्त, समर्थक खुले दुश्मन!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

भारतीय राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता – ना दोस्ती, ना दुश्मनी। और सबसे दिलचस्प बात? मंच पर दुश्मनी और मंच के पीछे “दुश्मन मेरा यार है” वाली फीलिंग।

राजनीतिक नेताओं की वही दुनिया है जहां कैमरे के सामने तलवारें खींची जाती हैं, और कैमरे के पीछे बटर चिकन और गरम चाय शेयर की जाती है।

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कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव: भिड़ंत या भाईचारा?

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कल्याण सिंह और मुलायम सिंह यादव मंच पर धुर विरोधी रहे। एक बीजेपी के स्टार, दूसरा समाजवादी सेनापति। लेकिन दोनों नेताओं की personal chemistry कमाल की थी।

मायावती और अखिलेश यादव: मंच पर हाथ, मन में बात

जब मायावती और अखिलेश यादव ने मंच साझा किया, तो समर्थकों के माथे पर बल पड़ गया। मायावती जिन्हें एक समय में “गुंडों की पार्टी” कहती थीं, वही अखिलेश उनके साथ चुनाव प्रचार में नजर आए। मंच पर भले ही हँसी-ठिठोली हो, पर अंदरखाने कुछ और कहानी होती है।

समर्थक बेचारे: जिन्हें सच में लगता है कि नेता दुश्मन हैं!

राजनीति के इस खेल में सबसे बड़ा नुकसान समर्थकों का होता है। वे फेसबुक पर लड़ते हैं, ट्विटर पर ट्रोल करते हैं, और मोहल्ले की चौपाल में बहस करते हैं — जबकि नेता अगली मीटिंग की जगह और मेन्यू डिसकस कर रहे होते हैं।

राजनीति की थ्योरी: “Public Enemy, Private Friends”

भारत की राजनीति में ये एक नियम जैसा बन गया है –“जहां मंच पर विरोध, वहां मन में मित्रता।”
नेताओं की ज़िंदगी ‘मंथन’ से कम नहीं – बाहर की आग अंदर की शांति से जलती रहती है।

राजनीति में नारे, वादे और भाषण असली खेल नहीं होते। असली खेल होता है बैकस्टेज की दोस्ती, कॉमन इंटरेस्ट और रणनीतिक गठबंधन। इसलिए अगली बार जब आप नेता को गरजते हुए देखें, तो समझ जाइए — चाय ब्रेक में सब सुलझा लिया जाएगा!

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