
उत्तर प्रदेश की राजनीति से बिहार की गलियों तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश में लगे सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने पटना में बड़ा एलान कर दिया है।
“अगर NDA ने सम्मान नहीं दिया, तो हम अकेले 156 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे!” – ओपी राजभर
अब बिहार की सियासत में यह सवाल तैरने लगा है — NDA से इज्ज़त जाएगी पहले या सीटें?
बीजेपी से ‘सीटों की सौदेबाज़ी’ नहीं, ‘सम्मान की मांग’ थी
राजभर ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में उन्होंने बीजेपी से एक मात्र सीट की डिमांड की थी।
बदले में उन्हें आश्वासन मिला कि पार्टी नेताओं को “बोर्ड और निगमों” में जगह मिलेगी।
पर न बोर्ड मिला, न निगम – बस बोर्डिंग पास मिल गया बिहार के लिए।
56 सीटों पर पकड़, 156 पर प्लान: NDA को अल्टीमेटम
राजभर ने कहा:
“हमने सीटों की संख्या तय नहीं की, पर बिहार में 56 सीटें ऐसी हैं जहां हमारी पकड़ मजबूत है।”
फिर हल्के अंदाज़ में जोड़ा:
“NDA ने सम्मानजनक भागीदारी नहीं दी, तो 156 सीटों पर अकेले लड़ेंगे।”
अंदर की बात यह है कि 56 पकड़ वाली सीटों से 156 कैसे बन गईं – इसका जवाब शायद “गणितीय सामाजिक न्याय” में छिपा है।
NDA में चल रही बातचीत, पर वक़्त कम है – ‘सीट का गेम’ शुरू
राजभर का दावा है कि सीट बंटवारे को लेकर बातचीत प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, और बीजेपी नेताओं से जारी है।
बिहार प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल और प्रभारी विनोद तावड़े भी सूची में हैं।
कुल मिलाकर बैठकों का भंडार है, लेकिन सीट का व्यापार अभी लंबित है।
जातिगत समीकरण: “26% अति पिछड़े, पर राजनीति में 0% इज्ज़त”
राजभर का सीधा आरोप है:
“बिहार में 26% आबादी अति पिछड़ी जातियों की है, लेकिन उन्हें सत्ता में जगह नहीं मिलती।”
अब वो इसे “अति पिछड़ा इंकलाब” में बदलना चाहते हैं – वो भी सीट के जरिए, ट्वीट के नहीं।
NDA से अलग होने के संकेत – बिहार की राजनीति में हलचल
चुनाव से पहले ही ये सीट शॉक बिहार की राजनीति में हलचल ला सकता है। राजभर की धमकी ऐसे वक्त में आई है जब सभी पार्टियाँ 2025 के समीकरण मजबूत करने में लगी हैं।
“सम्मान मिले तो NDA में रहेंगे, वरना ‘स्वाभिमान मोड’ ऑन हो जाएगा।”
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