
कुछ मीडिया संस्थानों ने तेज़ी से यह खबर चलाई कि “राहुल गांधी को पटना के गांधी मैदान में रात बिताने की अनुमति नहीं दी गई”।
इतना ड्रामा हुआ जैसे राहुल जी वहां कैम्पिंग टेंट लेकर खुद ही मैदान में धरने पर बैठने वाले थे।
प्रशासन ने कहा – “ना पूछे, ना मना किया”
पटना जिला प्रशासन ने आखिरकार सारा भ्रम तोड़ते हुए कहा:
“किसी ने गांधी मैदान में रात रुकने की अनुमति मांगी ही नहीं, तो हम मना क्यों करते?
उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस ने दो अनुमति मांगी:
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दिन की सभा
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रैली (कुछ न्यायिक शर्तों के साथ)
रात का कोई जिक्र तक नहीं था! यानी राहुल जी को प्रशासन ने नहीं रोका… शायद मौसम या मच्छरों ने रोका हो।
गांधी मैदान: होटल नहीं, हर किसी की चौपाल नहीं
अब देखिए, गांधी मैदान कोई OYO Room तो है नहीं जहां कोई भी ऐप खोल कर बुकिंग कर ले।
प्रशासन को तो पूछना पड़ता है –
“रुकना किसलिए है भाई? भाषण है या पिकनिक?”
मीडिया वालों, कहां से लाते हो इतनी रचनात्मकता?
कुछ चैनलों ने इतनी तेज़ी से “राहुल गांधी को रुकने से रोका गया” खबर चलाई कि ट्विटर पर ट्रेंड चल पड़ा !
असली बात: खबर से ज़्यादा खबरबाज़ी
इस पूरे प्रकरण से हम ये सीखते हैं:

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खबर है, तो पूछ लो
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अनुमति है, तो दिखा दो
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नहीं है, तो मत बनाओ
प्रशासन कह रहा है – “हमने मना किया ही नहीं, क्योंकि मांगा ही नहीं गया था।“
अब इसमें कौन-सी अत्याचार की कविता लिखी जाए?
राहुल गांधी का टेंट भी चुप है
इस पूरे ड्रामे का सार यही है — “ना टेंट लगा, ना नींद उड़ी – फिर भी न्यूज़ चल पड़ी!”
अब अगली बार कोई पूछे:
“राहुल गांधी को रात में गांधी मैदान में रुकने से रोका क्यों गया?”
तो आप कहिए:
“क्योंकि वो सोने ही नहीं आए थे, भाई!”
विधायक के भाई की अभद्र टिप्पणी और शराब के धंधे में गिरफ्तारी