
ग़ज़ा में हाल ही में हुए इसराइली हमले में अल जज़ीरा के पाँच पत्रकारों समेत छह मीडियाकर्मी मारे गए। इस घटना ने एक बार फिर वैश्विक स्तर पर बहस को हवा दे दी है, और भारत में इसका राजनीतिक असर भी देखने को मिला।
प्रियंका गांधी का बयान: “घिनौना अपराध”
कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी वाड्रा ने X (पूर्व में ट्विटर) पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा:
“अल जज़ीरा के पाँच पत्रकारों की निर्मम हत्या फ़लस्तीन की ज़मीन पर किया गया एक और घिनौना अपराध है।
सच के लिए खड़े होने वालों का साहस, इसराइल की हिंसा और नफ़रत से कभी नहीं टूटेगा।”
प्रियंका का यह बयान इंटरनेट पर तेजी से वायरल हुआ और कई लोगों ने इसे सपोर्ट भी किया।
इसराइली राजदूत की प्रतिक्रिया: “शर्मनाक धोखा है”
इस बयान पर भारत में इसराइल के राजदूत रूवेन अज़ार ने तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने X पर लिखा:
“शर्मनाक तो आपका धोखा है। इसराइल ने 25,000 हमास आतंकवादियों को मारा है।”
उन्होंने यह भी कहा कि:
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हमास नागरिकों को ढाल की तरह इस्तेमाल करता है।
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इसराइल ने 20 लाख टन खाद्य सामग्री ग़ज़ा में पहुँचाई।
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ग़ज़ा में नरसंहार का कोई सवाल नहीं उठता — आबादी पिछले 50 सालों में 450% बढ़ी है।
क्या है पूरा विवाद?
रविवार को ग़ज़ा के अल-शिफ़ा अस्पताल के पास हुए इसराइली एयरस्ट्राइक में छह पत्रकारों की जान चली गई, जिनमें अनस अल-शरीफ़ समेत अल जज़ीरा के पांच मीडियाकर्मी शामिल थे। इस घटना ने प्रेस फ्रीडम और ह्यूमन राइट्स को लेकर बड़ा सवाल खड़ा किया है।
सोशल मीडिया पर बहस तेज
प्रियंका गांधी और इसराइली राजदूत के बयानों के बाद सोशल मीडिया पर यूज़र्स दो खेमों में बंटे नजर आ रहे हैं। कुछ लोग प्रियंका के बयान को “ह्यूमनिटेरियन स्टैंड” बता रहे हैं, तो कुछ इसे “राजनीतिक ड्रामा” करार दे रहे हैं।
क्या कहता है इंटरनेशनल लॉ?
जंग के हालात में पत्रकारों की सुरक्षा जिनेवा कन्वेंशन के तहत संरक्षित होती है। लेकिन ग़ज़ा जैसे इलाकों में पत्रकार सबसे बड़े रिस्क पर हैं। क्या यह एक वॉर क्राइम है? इस पर अंतरराष्ट्रीय जांच की मांग उठ रही है।
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