पहलगाम आतंकी हमला: सोशल मीडिया पर दुख, गुस्सा और संयम की पुकार

जीशान हैदर
जीशान हैदर

देश एक बार फिर दहला है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने हर भारतीय के दिल को गहरे ज़ख्म दिए हैं। पूरा देश इस समय शोक में है—और गुस्से से भरा हुआ भी। लेकिन इस वक्त हमें एक और चीज़ की भी ज़रूरत है—संयम की।

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दुख और आक्रोश

सोशल मीडिया, न्यूज़ चैनल्स और लोगों की बातों में बस एक ही भावना है—दुख और आक्रोश। यह स्वाभाविक है। लेकिन इसी भावना में बहकर कुछ ऐसा लिख देना जो हमारे शत्रुओं को फायदा दे, यह हमें नहीं करना चाहिए।

क्यों ज़रूरी है संयम?

पाकिस्तान या आतंकी संगठन सिर्फ हथियारों से नहीं, प्रचार और भ्रम फैलाने वाले कंटेंट से भी लड़ते हैं। अगर हम भावनाओं में बहकर आपत्तिजनक पोस्ट, धार्मिक भेदभाव या हिंसा की भाषा का प्रयोग करते हैं, तो वही उनके एजेंडे को मज़बूत करता है। सोशल मीडिया पर हमारा हर शब्द एक हथियार बन सकता है—या तो अपने राष्ट्र के लिए, या उसके खिलाफ।

क्या करें इस समय में?

जिन्होंने अपनी जान गवाई है उनके परिवार के साथ एकजुटता दिखाएं, लेकिन गरिमा बनाए रखें। अफवाहों से बचें। किसी भी असत्यापित खबर को शेयर न करें। अगर कुछ लिखना है, तो लिखिए लेकिन भारत की गरिमा, सेना की बहादुरी और राष्ट्रीय एकता को ध्यान में रखकर। इसके साथ ही ऐसा लिखिए जो पकिस्तान और उसके हुक्मरानों को कड़ा संदेश दे। ध्यान रहे नफरत से नहीं, न्याय और बदलाव की मांग से अपनी बात कहें।

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भारत की शक्ति उसके नागरिकों में है

हमारा शौर्य सिर्फ युद्ध के मैदान में नहीं, हमारे शब्दों और सोच में भी दिखना चाहिए। पाकिस्तान की कोशिश होगी कि हम टूट जाएं, आपस में लड़ें, लेकिन हम उन्हें यह मौका नहीं देंगे।

पहलगाम में जो हुआ, वह हर भारतीय के लिए एक निजी चोट है। लेकिन हमारी प्रतिक्रिया ही तय करेगी कि हम एक ज़िम्मेदार लोकतंत्र हैं या भावनाओं में बह जाने वाली भीड़। आज सबसे बड़ी देशभक्ति यह है कि हम सोच-समझकर बोलें, एकजुट रहें और शांति, सुरक्षा व अखंडता की आवाज़ बनें।

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