
25 जून 1964 को उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के मल्लावां कस्बे में जन्मे ब्रजेश पाठक ने लखनऊ विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई करते हुए ही जनता के दिलों में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी थी।
1989 में छात्रसंघ के उपाध्यक्ष और फिर 1990 में अध्यक्ष बने — यहीं से एक लीडर बनने की कहानी की शुरुआत हुई।
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कांग्रेस से बसपा तक: बदलते दल, पर जनता के लिए एक जैसा समर्पण
राजनीति की पहली परीक्षा 2002 में कांग्रेस टिकट पर लड़ी, हार भले हुई, पर हौसला नहीं टूटा।
2004 में बसपा से सांसद बने, मायावती सरकार में राज्यसभा सदस्य और सदन में उपनेता जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया।
उनकी पत्नी नम्रता पाठक भी इस दौर में राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष बनीं — यानी परिवार सहित जनसेवा का व्रत लिया।
बीजेपी में सुनहरा अध्याय: जननेता से सरकार के मजबूत स्तंभ तक
2016 में ब्रजेश पाठक ने बीजेपी का दामन थामा और 2017 में लखनऊ सेंट्रल से जीतकर योगी सरकार में कानून मंत्री बने। आज वह न सिर्फ़ उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम हैं, बल्कि स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण जैसे संवेदनशील विभागों को सफलता से संभाल रहे हैं।
उनकी पहचान है—“विवादों से दूर, काम से ज़मीन पर, और जनता के बीच में!”
निजी जीवन: एक साधारण ब्राह्मण परिवार से निकला असाधारण जननायक
उनके पिता सुरेश पाठक का सपना था कि बेटा समाज के काम आए। पत्नी नम्रता और तीन बच्चों के साथ उनका पारिवारिक जीवन उतना ही सरल, सादा और विनम्र है जितना एक जनप्रतिनिधि का होना चाहिए।
जनता के सुख-दुख का साथी: ब्रजेश पाठक
राजनीति में नफा-नुकसान की बात सभी करते हैं, लेकिन ब्रजेश पाठक उन नेताओं में हैं जो हर छोटे-बड़े कार्यकर्ता की बात सुनते हैं,
हर पीड़ित को गले लगाते हैं, और हर ज़रूरतमंद के लिए दरवाज़ा खुला रखते हैं।
विपक्ष की राजनीति से ऊपर उठकर उन्होंने अपने व्यवहार, कानूनी समझ और संवेदनशील प्रशासनिक निर्णयों से खुद को जनता का सेवक सिद्ध किया है।
ब्रजेश पाठक—वो नाम, जो सियासत में रिश्तों को निभाना जानता है
उनकी राजनीति महज़ कुर्सी की दौड़ नहीं, यह जनता के साथ खड़ा रहने की मिसाल है।
आज जब वे 61वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, तब पूरा उत्तर प्रदेश कह रहा है—“ऐसे जन नेता को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ!”
कलेक्टर नहीं बने, तो क्या ज़िंदा रहना भी ज़रूरी नहीं?” —नंबरों की राजनीति