
कथावाचन एक ऐसी कला है जिसमें रामायण और भागवत पुराण की बातें ऐसे सुनाई जाती हैं कि लोग दो घंटे मोबाइल नहीं देखते (माने भक्ति में ध्यान लगाते हैं)। इसका उद्देश्य सिर्फ धार्मिक कथा सुनाना नहीं, बल्कि नैतिकता का गूगल मैप खोलना होता है।
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कथावाचक कौन होता है?
कथावाचक वो व्यक्ति होता है जो कथा को ऐसा सुनाए कि श्रोता का ध्यान ‘Netflix’ से हटकर ‘Next Birth’ की प्लानिंग पर आ जाए। ये सिर्फ राम-नाम नहीं जपते, ये श्रोताओं के “कर्म-डाटा” को अपडेट करने वाले सोशल इंजीनियर होते हैं।
कहां मिलती है कथावाचन में डिग्री?
अब कोई कहे कि “कथा तो आ जाती है”, तो ज़रा ठहर जाइए। भारत की संस्कृत यूनिवर्सिटियों जैसे – प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, दिल्ली और संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी, वाराणसी में बाकायदा कथावाचक बनने की डिग्री मिलती है। यानी अब “बाबा बनो, पर मान्यता के साथ”।
डिजिटल युग में कथा: Zoom पर श्रीकृष्ण लीला
भक्ति भी अब डिजिटल हो चुकी है! वाराणसी की संपूर्णानंद यूनिवर्सिटी ने कथावाचन का ऑनलाइन कोर्स लॉन्च कर दिया है। यानी अब “जय श्रीराम” कहने के लिए किसी माइक या मंच की ज़रूरत नहीं—बस Zoom लिंक चाहिए।

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सोचिए, भविष्य में इंस्टाग्राम पर “@Katha_King_Official” जैसे हैंडल होंगे, जिनकी Reels में ‘गीता सार’ होगा और कैप्शन में ‘लाइफ मंत्रा’। पब्लिक बोलेगी – “ओ बाबा! तू तो रील्स में भी रियल निकला।”
कथावाचन केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि आज के डिजिटल दौर में नैतिकता का ब्रॉडकास्ट है। तो अगर आप कथा कह सकते हैं, तो अब माइक ही नहीं, माउस भी आपका साधन है।
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