“बाढ़ आई नहीं, लाई गई है!” — सुप्रीम कोर्ट की कड़ी फटकार!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

उत्तर भारत में 2025 का मॉनसून, बारिश कम और तबाही ज़्यादा लेकर आया। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने इस “नेचुरल डिजास्टर” को “मैन-मेड डिजास्टर” कहकर पूरे मुद्दे की दिशा ही बदल दी है।

CJI BR गवई बोले: “पहली नजर में तो ऐसा लग रहा है जैसे पेड़ों की सामूहिक हत्या हुई है।”

यानी कि, बाढ़ नहीं आई… हम खुद बुला लाए थे — अवैध कटाई और लापरवाह प्लानिंग से।

चार राज्यों और केंद्र को सुप्रीम कोर्ट की चिट्ठी

सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर को कहा है: “हमें जवाब चाहिए — 3 हफ्तों में!”

बात सिर्फ बाढ़ की नहीं है, जिम्मेदारी की है। और कोर्ट अब सिर्फ मूक दर्शक नहीं रहना चाहता।

लकड़ी बहती नहीं, बहाई जाती है!

CJI ने मीडिया रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा कि:

“हिमाचल में बाढ़ के दौरान नदी में लकड़ी के लट्ठ बहते दिखे। ये पेड़ खुद नहीं कूदे थे!”

इससे इशारा साफ है — अवैध जंगल कटाई ने बारिश की मार को और भयानक बना दिया।

पंजाब: 1988 के बाद सबसे भयानक बाढ़

  • 23 में से सारे 23 जिले पानी में!

  • 1.5 लाख हेक्टेयर फसलें तबाह

  • 3.5 लाख लोग बेघर

  • 40 मौतें और गिनती जारी है…

सतलुज और रावी नदियां आजकल “फ्लड मोड” में हैं। मानो कह रही हों — “अब हमारी बारी!”

हिमाचल-उत्तराखंड: पहाड़ खिसके, सरकार भी?

  • 45 बादल फट चुके हैं

  • 95 भूस्खलन

  • 4000 घर तबाह

  • 700 सड़कें गायब

मनाली हाइवे? अब बस यादों में बचा है…

जम्मू-कश्मीर: सड़कें बहीं, श्रद्धा रुकी

  • चिनाब, झेलम, तवी — सब उफनती रहीं

  • वैष्णो देवी यात्रा तक रुकी

  • कई ज़िलों में पलायन शुरू

CM साहब ने कहा: “हर जिले को 10 करोड़ दो!”
प्रश्न ये है: पहले अव्यवस्था रोक लेते, तो शायद इतने करोड़ों की ज़रूरत ही न पड़ती।

सॉलिसिटर जनरल को भी चेतावनी

CJI ने केंद्र सरकार से कहा:

“यह सिर्फ प्रकृति का कहर नहीं है — इंसानों की लापरवाहियों की परिणति है। अब टाइम है कुछ करने का!”

तो सवाल ये उठता है…

क्या हर साल हम सिर्फ “प्राकृतिक आपदा” कहकर खुद की गलतियों पर पर्दा डालते रहेंगे?

या अब वक्त आ गया है, जब “डिवेलपमेंट” का मतलब सिर्फ बिल्डिंग्स नहीं, प्रकृति की इज्ज़त भी माना जाए? 

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