“बिना पैसे कोई काम नहीं!”—भाजपा की नेता ने सरकार को कर डाला ट्रोल

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

जब ये बात आम जनता कहती है, तब सरकार कहती है — “हम जाँच करेंगे!” लेकिन जब खुद बीजेपी नेता कहे तो… कुछ पल के लिए इंटरनेट भी शर्म से स्क्रीन ब्लर कर देता है।

कुशीनगर की भाजपा महिला मोर्चा की जिला उपाध्यक्ष नूतन दुबे ने फेसबुक लाइव में जो कहा, उसने अफसरों के व्हाट्सएप ग्रुप में हलचल मचा दी। बयान सुनकर सरकारी कर्मचारी ऐसे चौकन्ने हुए जैसे बिल्लियाँ दूध में नमक देख लें।

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थाने से तहसील तक “नकद दो, वरना इंतजार करो” स्कीम!

नूतन दुबे ने आरोप लगाया कि बिना घूस दिए न कोई एफआईआर लिखी जाती है, न कोई फॉर्म आगे बढ़ता है। यानी विकास की गाड़ी है, लेकिन पेट्रोल सिर्फ पैसे वाला भरवा सकता है।

थाने की हालत ऐसी बताई कि जैसे वहाँ “जन सेवा केंद्र” की जगह “जन लेवा केंद्र” खुल गया हो।
क्लर्क साहब अब घड़ी नहीं गिनते, जेब की गिनती करते हैं!

“सब चोर हैं” – और ये लाइन किसी आंदोलनकारी ने नहीं, नेताजी ने बोली!

नूतन दुबे ने कहा, “सभी सरकारी कर्मचारी चोर और भ्रष्ट हैं।” अब सवाल ये है कि जब सरकार की अपनी नेत्री ही सिस्टम को “थोक में चोर मंडी” बता दे, तो विरोधी पार्टियों को माइक की ज़रूरत नहीं रहती।

सोशल मीडिया पर इस बयान पर मज़ेदार रिएक्शन आए:
“अब RTI की जगह RT-पीएसयू-घूस स्कीम शुरू होनी चाहिए।”

फेसबुक लाइव से प्रशासन की नींद उड़ी, जनता ने कहा – Welcome to Reality!

जैसे ही वीडियो वायरल हुआ, जिले में हड़कंप मच गया। अधिकारी पहले तो मोबाइल नेटवर्क का दोष देते रहे, फिर बोले: “नेत्री जी भावनाओं में बह गई होंगी।”
मतलब जैसे परीक्षा में नकल करते पकड़े जाने पर छात्र कहे — ‘मुझे सवाल अच्छा लगा, इसलिए देख लिया’।

पार्टी बोलेगी क्या? या सिर्फ वायरल का ‘प्रेस नोट’ छापेगी?

इस पूरे मामले पर अब तक भाजपा का कोई औपचारिक बयान नहीं आया है। ऐसा लग रहा है कि पार्टी कह रही हो:
“हमने डेमोक्रेसी दी थी, लोकतंत्र नहीं!”

अब देखना ये होगा कि भाजपा इस मुद्दे पर “डैमेज कंट्रोल” करती है या इसे “नेत्री के व्यक्तिगत विचार” कहकर मौन व्रत धारण कर लेती है।

वीडियो असली है या एडिटेड – कौन कहेगा?

हम वीडियो की पुष्टि नहीं करते है, लेकिन जनता के मोबाइल में तो ये GIF बना कर स्टेटस तक पहुंच गया है। अब तो ब्रॉडकास्ट से ज्यादा वायरल भरोसेमंद लगता है!

नेत्री का गुस्सा: सच्चाई बोलना अब पार्टी अनुशासन तोड़ना है?

नूतन दुबे का गुस्सा सिर्फ फेसबुक लाइव तक सीमित नहीं रहा — उन्होंने पार्टी, प्रशासन और सिस्टम को एक साथ लपेट दिया।
लेकिन अब यही डर है कि कहीं उन्हें “दलबदलू” या “अंदरूनी शत्रु” का तमगा न दे दिया जाए।

नेता के पास माइक हो, और दिल में ज़हर… तो लोकतंत्र की मीठी बातें भी कड़वाहट घोल देती हैं।

कभी-कभी घर के लोग ही आईना दिखा देते हैं!

नूतन दुबे के बयान ने यह तो साफ कर दिया कि “सब चंगा सी” बोलने से ज़्यादा ज़रूरी है “सब ठीक नहीं है” कहना।

अब पार्टी चाहे उन्हें चुप कराए या पद से हटाए, लेकिन जनता तो कह रही है:

“कम से कम किसी ने तो सच कहा – वरना ज़्यादातर लोग चुनाव तक गूंगे रहते हैं!”

“सरकारी सिस्टम में बिना रिश्वत के काम करवाना वैसा ही है, जैसे ATM से निकलते ही लॉटरी लग जाए — दोनों में चमत्कार चाहिए।”

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