
सोनाक्षी सिन्हा की नई पेशकश “निकिता रॉय” किसी आम मसाला फिल्म जैसी नहीं, ये भूत-प्रेतों और झूठे बाबाओं की दुनिया से निकलकर सीधे आपकी रीढ़ की हड्डी में सनसनी भरने आई है। और हां, इस बार डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठे हैं खुद उनके भाई – कुश एस सिन्हा। भाई साहब की पहली फिल्म है, लेकिन उन्होंने डराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कहानी में ट्विस्ट और बाबा की पोल खोल
फिल्म की कहानी घुमावदार है, जैसे पुराने जमाने के ज़मीन के झगड़े। सोनाक्षी बनी हैं निकिता, जो एक खोजी पत्रकार हैं। उनका मिशन? एक ढोंगी बाबा अमर देव (परेश रावल) की असलियत सामने लाना। परेश रावल यहां “सिर्फ़ डराओ मत – उलझाओ भी” वाली नीति अपनाते हैं। वो जनता को भूत भगाने के नाम पर जो कर रहे हैं, उससे लगता है कि अब बाबा लोग भी हॉलीवुड देख के आए हैं।
अर्जुन रामपाल – आधा इंसान, आधा रहस्य
फिल्म में अर्जुन रामपाल दिखते हैं जैसे नेटफ्लिक्स के किसी डॉक्यूमेंट्री से उठकर आ गए हों। चश्मा, दाढ़ी और गंभीरता – लगता है ये ‘सुपरनैचुरल रिसर्चर’ बनने की ट्रेनिंग NASA से ली है।
अभिनय: सोनाक्षी का कमबैक पंच
सोनाक्षी सिन्हा का अभिनय इस फिल्म में काफी मजबूत है। वो अपने डायलॉग्स को ऐसे बोलती हैं जैसे हर लाइन के साथ किसी भूत की खैर नहीं। परेश रावल हमेशा की तरह पर्दे पर जान फूंकते हैं। अर्जुन रामपाल स्टाइल में भारी हैं, लेकिन इमोशन में थोड़े लाइट।

निर्देशन: कुश का डायरेक्टोरियल डेब्यू
पहली बार डायरेक्शन में आए कुश एस सिन्हा ने फिल्म को सस्पेंस, मनोविज्ञान और सुपरनैचुरल के तड़के के साथ पेश किया है। कुछ सीन्स तो इतने अच्छे से शूट किए गए हैं कि आप चाहकर भी स्क्रीन नहीं देख पाएंगे (शायद डर के मारे भी)।
तकनीकी पक्ष: कैमरा, सिनेमैटोग्राफी और बैकग्राउंड म्यूज़िक
फिल्म की सिनेमैटोग्राफी शानदार है – हर फ्रेम में डर को ऐसे कैद किया गया है जैसे CBI सबूतों को। बैकग्राउंड म्यूजिक भी काफी प्रभावी है, और कई बार तो सीट से उछाल भी देता है।
डर और सस्पेंस का स्वाद चाहिए तो टिकट कटाइए
“निकिता रॉय” उन लोगों के लिए है जो हॉरर और थ्रिलर में भारतीय तड़का पसंद करते हैं। फिल्म न सिर्फ़ डराती है, बल्कि अंत तक बांधे भी रखती है। सोनाक्षी का ये अवतार देखने लायक है और कुश एस सिन्हा का डेब्यू वाकई प्रभावी है।