
पहले जहां लखनऊ नगर निगम के दरवाज़े पत्रकारों के लिए खुले रहते थे, अब वहां ताला भले न लगा हो, “पर्ची सिस्टम” जरूर लगा दिया गया है। नए नगर आयुक्त गौरव कुमार ने पदभार ग्रहण करते ही मीडिया से बातचीत पर लगाम कस दी है।
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“सवाल नहीं, सिर्फ जिलाधिकारी की बाइट”
नगर आयुक्त गौरव कुमार ने पत्रकारों के सवालों पर साफ कह दिया,
“नगर आयुक्त मीडिया को प्रतिक्रिया देने के लिए अधिकृत नहीं हैं। मीडिया बाइट केवल जिलाधिकारी देंगे।”
यानि अब सवाल पूछने का नहीं, “प्रेस नोट पढ़ने” का ज़माना लौट आया है।
पत्रकारों के लिए दरवाज़े बंद, पर्ची खुली
पूर्व नगर आयुक्त इंदरजीत सिंह के दौर में जहाँ पत्रकार कभी भी ज़ोनल अधिकारियों से मिल सकते थे, वहीँ अब पत्रकारों को नगर आयुक्त से मिलने के लिए पहले पर्ची डालनी होगी, फिर इंतज़ार करना होगा कि बुलावा आए या नहीं।
यानी अब पत्रकारिता नहीं, “दरबारी पद्धति” का पालन होगा।
सवाल पूछो, लेकिन… पर्ची डालकर!
इस नई व्यवस्था ने मीडियाकर्मियों को सकते में डाल दिया है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर कहा,
“अब तो लगता है नगर निगम प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं, पंचायत का मुंशियाना चला रहा है।”
मीडिया प्रबंधन या “मीडिया मुक्ति अभियान”?
नगर आयुक्त का ये नया रुख “सूचना का अधिकार” तो छोड़िए, सवाल पूछने का भी हक़ सीमित कर रहा है। अब न अधिकारी सामने आएंगे, न जवाब देंगे — बस जिलाधिकारी का बयान सब पर भारी पड़ेगा।
नगर निगम के गलियारों में भले सफाई अभियान चल रहा हो, लेकिन सूचना तंत्र पर जमी धूल को साफ करने की बजाय, उसे अब पर्दे के पीछे छुपाया जा रहा है। गौरव कुमार का यह “मौन प्रशासन मॉडल” कितना प्रभावी होगा, ये तो वक्त बताएगा — फिलहाल पत्रकार पर्ची लेकर कतार में हैं… और जनता सवालों के जवाब ढूंढ रही है।
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