नज़ाकत अली बने देवदूत : पहलगाम आतंकी हमले में बचे कुलदीप ने सुनाई दहशत भरी दास्तान

हुसैन अफसर
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जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के चश्मदीद कुलदीप ने बताया कि कैसे फायरिंग के बीच उन्होंने अपने बच्चों को बचाया और कैसे उनकी पत्नी व परिवार सुरक्षित निकला। 17 अप्रैल को कुलदीप अपने परिवार संग जम्मू पहुँचे। वहाँ से गुलमर्ग, सोनमर्ग घूमते हुए वे 18 अप्रैल को पहलगाम पहुँचे थे। छुट्टियों का माहौल था — खेल-कूद, मस्ती और रील बनाने में पूरा परिवार व्यस्त था। इसी दौरान अचानक फायरिंग की आवाज़ गूंजी।
कुलदीप ने न्यूज़ एजेंसी को बताया, “पहले तो सोचा कोई पटाखा फूटा होगा, लेकिन दूसरी बार आवाज़ आई तो घबराहट बढ़ गई।”

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जब सामने दिखा बंदूकधारी

जंगल की ओर देखने पर कुलदीप ने देखा कि एक आदमी बंदूक लिए किसी अन्य व्यक्ति से बातचीत कर रहा था। स्थिति को भांपते हुए कुलदीप ने तुरंत अपने बच्चों को उठाया और हमलावरों से विपरीत दिशा में दौड़ पड़े। “मैंने बच्चों को उठाया और छह फीट ऊँची रेलिंग किसी तरह पार की, लेकिन पत्नी और भाभी वहीं फंस गईं,” कुलदीप ने कहा।

मौत से दौड़

कुलदीप ने बच्चों को लेकर लगभग 12 से 13 किलोमीटर तक दौड़ लगाई। भागते वक्त बस यही सोच रहे थे कि किसी तरह बच्चों को बचाना है। कुछ देर बाद कुलदीप को पत्नी का फोन आया — सौभाग्य से स्थानीय लोगों की मदद से पत्नी और अन्य परिजन भी सुरक्षित निकल आए थे।

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नज़ाकत अली ने निभाई भाईचारे की मिसाल

कुलदीप ने बताया कि नज़ाकत अली, जो बचपन से उनके परिवार से जुड़ा था और भाई जैसा था, भी बच्चों के साथ था और मदद कर रहा था। इस घटना में स्थानीय लोगों ने भी साहस और इंसानियत की मिसाल पेश की।

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