
जब श्रद्धा सियासत पर भारी पड़ जाए, तो खबरें सिर्फ हेडलाइन नहीं बनतीं — वो विचारधारा की कसौटी पर कसने लगती हैं। समाजवादी महिला सभा की राष्ट्रीय सचिव मुस्कान मिश्रा को पार्टी से हटा दिया गया है — वजह? हनुमानगढ़ी में दर्शन और महंत राजू दास से मुलाकात।
हनुमानगढ़ी में “जय श्रीराम”, लखनऊ में “पद मुक्त”
मुस्कान मिश्रा बीते रविवार को अयोध्या गईं थीं — रामलला के दर्शन किए और फिर हनुमानगढ़ी में महंत राजू दास से मुलाकात भी हो गई। ये वही महंत हैं जिन्होंने कभी मुलायम सिंह यादव पर विवादित टिप्पणी की थी। तस्वीरें वायरल हुईं, और फिर क्या — तीन महीने पहले मिला पद, तीन सेकंड में छीन लिया गया।
“श्रद्धा में राजनीति कहां से आ गई?” – मुस्कान की सफाई
मुस्कान मिश्रा ने कहा, “मैं रामलला के दर्शन को गई थी, किसी राजनीतिक उद्देश्य से नहीं। महंत जी से मुलाकात भी सिर्फ श्रद्धा के भाव से हुई।”
उन्होंने ये भी जोड़ा कि उन्हें कोई सूचना दिए बिना पद से हटा दिया गया, और वे नहीं जानती कि उनकी बात अखिलेश यादव तक पहुंची या नहीं।
“मैं सनातनी हूं, रहूंगी!” – मुस्कान का दो टूक संदेश
सपा की कार्रवाई पर मुस्कान मिश्रा का जवाब बिल्कुल साफ़ था:
“मैं सनातनी हूं और हमेशा रहूंगी। चाहे मैं किसी भी पार्टी में रहूं, धर्म नहीं छोड़ूंगी।”
राजनीति से ज्यादा उनकी आस्था चर्चा में है, और सोशल मीडिया पर भी उनकी जबरदस्त फॉलोइंग है — 6.68 लाख फॉलोअर्स वाला सोशल मीडिया इंफ्लुएंसर अब पार्टी विंग से बाहर है।

तीन महीने की पोस्टिंग, तीन घंटे की राजनीति और तीन सेकंड की बर्खास्तगी
तीन महीने पहले मिली पोस्टिंग को लेकर मुस्कान मिश्रा ने कई महिला कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। लेकिन लगता है कि रामलला के दर्शन ने सपा के ‘धर्मनिरपेक्ष चश्मे’ को चुभन दे दी। नतीजा — कोई नोटिस नहीं, कोई चर्चा नहीं — सीधा “पद से बाहर” का फरमान!
पार्टी लाइन Vs पर्सनल फेथ: सवाल अनसुलझे
क्या किसी राजनीतिक दल में रहते हुए निजी आस्था सार्वजनिक रूप से दिखाना अपराध है?
क्या किसी महंत से मिलने से विचारधारा बदल जाती है?
ये सवाल अब सिर्फ मुस्कान मिश्रा नहीं, पूरे विपक्ष के लिए आईना बन सकते हैं।
आखिर में: राजनीति में दर्शन भारी है या दर्शन में राजनीति?
जो भी हो, हनुमानगढ़ी की सीढ़ियों से शुरू हुई मुस्कान की ये सियासी यात्रा अब नई राह ले सकती है। क्या वह किसी और पार्टी में जाएंगी, या सोशल मीडिया के सहारे एक अलग राजनीतिक ब्रांड बनेंगी?
राजनीति राम भरोसे है — कब किसका पत्थर मूर्ति बन जाए, और किसका पोस्ट हट जाए, कोई नहीं कह सकता!
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