
‘ऑपरेशन सिंदूर’ और सीमा पार आतंकवाद को लेकर दुनिया को भारत की स्थिति समझाने के लिए मोदी सरकार ने सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल तैयार किए हैं। लेकिन इस पहल पर अब राजनीतिक तूफान आ खड़ा हुआ है।
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कांग्रेस का आरोप: सरकार ने नाम मांगे, फिर अनदेखी की
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने एक्स पर आरोप लगाया कि:
“मोदी सरकार ने 16 मई को सुबह 4 नाम मांगे थे, जिन्हें हमने समय रहते भेज दिया। लेकिन 17 मई को जारी लिस्ट में सिर्फ एक ही नाम रखा गया।”
कांग्रेस ने जिन नेताओं के नाम भेजे थे, वे थे:
आनंद शर्मा
गौरव गोगोई
डॉ. सैयद नासिर हुसैन
राजा बरार
लेकिन अंतिम सूची में सिर्फ गौरव गोगोई को जगह दी गई।
सरकार की ओर से जारी सूची में कौन-कौन?
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू द्वारा जारी लिस्ट में BJP, TMC, BJD, JDU और अन्य दलों के नेता शामिल हैं। लेकिन कांग्रेस के बाकी नामों की अनुपस्थिति ने सवाल खड़े कर दिए हैं।
कांग्रेस ने क्या कहा?
कांग्रेस का बयान तीखा था:
“यह राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर मोदी सरकार की गंभीरता की कमी और घटिया राजनीतिकरण को दर्शाता है।”
साथ ही पार्टी ने स्पष्ट किया कि जो कांग्रेस नेता प्रतिनिधिमंडल में शामिल किए गए हैं, वे राष्ट्रहित में भाग ज़रूर लेंगे।
राजनीति या प्राथमिकता?
इस घटनाक्रम को कई विश्लेषक राष्ट्रीय हित बनाम दलगत राजनीति की खींचतान के तौर पर देख रहे हैं। एक तरफ सरकार आतंकवाद पर विश्व को भारत की स्थिति स्पष्ट करना चाहती है, दूसरी तरफ विपक्ष इसे अपनी अनदेखी मान रहा है।
यह मामला बताता है कि भारत में सुरक्षा और विदेश नीति जैसे संवेदनशील मुद्दे भी अब विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच सियासी बहस का हिस्सा बनते जा रहे हैं।
जहां सरकार एक साझा वैश्विक रणनीति की बात करती है, वहीं कांग्रेस इसमें भेदभाव और PR राजनीति का आरोप लगा रही है।