कांशीराम पुण्यतिथि पर जुटा BSP का जनसैलाब, साइकिल पंचर, हाथी तैयार!

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

लखनऊ की सड़कों पर आज नीले रंग का राज। रामाबाई अंबेडकर मैदान से लेकर कांशीराम स्मारक स्थल तक, हर तरफ सिर्फ एक ही नाम गूंज रहा — मायावती

पार्टी वर्कर्स नीले झंडों, “I Love BSP” पोस्टर्स और जोश से लबरेज दिखाई दिए। आयोजकों ने दावा किया कि रैली में पांच लाख से ज़्यादा लोग पहुंचे, और ज़मीन पर भीड़ देखकर लगा कि BSP फिर से “बैठ गई है मैदान में, गिन लो वोटों के दाने।”

सपा-कांग्रेस को “लव लेटर” नहीं, “शॉक लेटर”

मायावती ने अखिलेश यादव पर हमला करते हुए कहा, जब सत्ता में होते हैं तो PDA गायब, बाहर होते ही PDA याद आ जाता है।

उधर कांग्रेस वालों को भी नहीं छोड़ा, संविधान हाथ में लेकर नाटक करते हैं, पर इमरजेंसी में उसी संविधान को कुचला था।

कांशीराम नगर का नाम बदलने से लेकर योजनाएं बंद करने तक, उन्होंने सपा को “दोमुंही राजनीति” का पर्याय बताया।

BJP को मिला ‘थैंक यू’, पर संदेश साफ

मायावती ने योगी सरकार की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने स्मारकों के रखरखाव के लिए टिकट मनी को सही दिशा दी। हम भाजपा सरकार के आभारी हैं… लेकिन समझिए, ये आभार सिर्फ मेंटेनेंस तक सीमित है, वोटों में नहीं!”

सुरक्षा भी फुल मूड में: पुलिस और PAC ने संभाली कमान

  • 2,114 पुलिसकर्मी,

  • 4 DCP,

  • 7 ACP,

  • 549 दरोगा,

  • 182 होमगार्ड,

  • और 1 RAF कंपनी

शायद IPL फाइनल से भी बड़ी सिक्योरिटी थी ये।

कार्यकर्ता बोले: “नेता नहीं, देवी हैं मायावती जी”

कई जिलों से पैदल चलकर आए BSP समर्थकों की भीड़ मैदान की दीवारें तक फांदने लगी। मैदान के अंदर भीड़, बाहर भीड़।

“रैली के बाद रील नहीं, रियल फीडबैक”

रैली के बाद मायावती चुनिंदा नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ बैठकर सीधा फीडबैक लेंगी — कौन मैदान में जोश से भरा, कौन कुर्सी से चिपका रहा। फिर उसी के हिसाब से संगठन में फेरबदल होगा।

ट्रैफिक अलर्ट: “हाथी निकला है, कार बाइक साइड करो”

  • कानपुर रोड, आलमबाग, चारबाग, गोमतीनगर, रायबरेली रोड — सब जगह डायवर्जन

  • गूगल मैप्स भी परेशान: “आपका रास्ता लखनऊ में मायावती जी तय कर रही हैं।

क्यों खास है ये रैली?

2021 की याद दिलाती ये रैली बसपा की सियासी रीलोडिंग है। 2022 में मिली सिर्फ 1 सीट की हार को पीछे छोड़कर अब 2027 के मिशन की नींव रखी जा रही है।

मायावती की यह रैली सिर्फ एक श्रद्धांजलि कार्यक्रम नहीं, बल्कि राजनीतिक चेतावनी थी — “जो भूले हैं हाथी को, वो 2027 में पछताएंगे।”

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