लखनऊ की स्ट्रीट लाइट्स फ्यूज़, कानून-व्यवस्था कन्फ्यूज़!

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

लखनऊ की सड़कों पर रात को रौशनी से ज़्यादा अंधेरा पसरा है, और उसका फायदा कोई और नहीं बल्कि गुंडा तत्त्व उठा रहे हैं।
अपर पुलिस उपायुक्त ने सीधा नगर आयुक्त को खत लिख डाला –

“अगर स्ट्रीट लाइट्स ठीक नहीं हुईं, तो लखनऊ की कानून व्यवस्था Candle Mode में चली जाएगी!”

गणेश महोत्सव आने वाला है, लेकिन रौशनी नहीं!

धार्मिक आयोजनों की सुरक्षा को लेकर पुलिस ने चेतावनी दी है कि:

  • श्रद्धालुओं की भीड़

  • महिलाओं की सुरक्षा

  • और सड़क पर ‘अंधेरा’ – ये तीनों मिलकर अप्रिय घटनाओं को न्योता दे सकते हैं।

“गणपति बप्पा मोरया” की गूंज के बीच अगर अंधेरे में मोबाइल चोरी हो गया, तो भक्त हॉल में और चोर होलिडे पर!”

5,000 से ज़्यादा स्ट्रीट लाइट्स बंद – शहर की रौशनी गई छुट्टी पर!

नगर निगम के मुताबिक लखनऊ में लगभग 5,000 स्ट्रीट लाइट्स काम नहीं कर रहीं। रात को गाड़ियाँ चलाना और पैदल चलना ऐसा हो गया है जैसे ब्लाइंड डेट पर जाना, जहां सामने क्या आ रहा है – पता नहीं!

लोगों को गड्ढे दिखते नहीं, चोर दिखते नहीं, और नगर निगम… काम करता नहीं!

पुलिस बोले – अंधेरे में नहीं दिखते अपराधी, CCTV भी सो जाता है!

पुलिस का कहना है कि खराब लाइट्स के कारण:

  • छेड़छाड़

  • लूटपाट

  • और हमले जैसी घटनाएं खुल्लमखुल्ला हो रही हैं।

अंधेरे वाली गली बन गई है ‘क्राइम कैफे’, जहां अपराधी चाय पीते हुए वारदात को अंजाम देते हैं।

विधायक, पार्षद, जनता – सब एक सुर में: “लाइट दो भाई!”

पार्षदों और विधायकों ने भी शिकायतें दर्ज करवाई हैं, लेकिन नगर निगम शायद सोलर मोड में चला गया है – सिर्फ धूप में एक्टिव!

लोगों का कहना है कि प्रशासन शिकायतें तो लेता है, पर समाधान का बल्ब फिटिंग से पहले ही फ्यूज़ हो जाता है।

शहर की छवि पर बुरा असर, “नवाबी रोशनी” अब सिर्फ कहावत!

लखनऊ की पहचान रौशनी, तहज़ीब और शांति से होती थी।
अब पहचान हो रही है:

  • अंधेरी गलियों से

  • खामोश पोल से

  • और ‘नो रिप्लाई’ नगर निगम ऐप से!

“जिस लखनऊ को शहर-ए-नूर कहा जाता था, अब वो अंधेरे का एड्रेस बनता जा रहा है।”

लाइट नहीं तो सिक्योरिटी नहीं – और सुरक्षा नहीं तो शहर नहीं!

लखनऊ जैसे बड़े शहर में स्ट्रीट लाइट्स की खराबी कोई छोटी समस्या नहीं। यह सीधा-सीधा सुरक्षा, प्रशासनिक ज़िम्मेदारी और शहर की छवि पर हमला है। अगर अब भी नगर निगम ने आंखें न खोलीं, तो अगली बार गणेश विसर्जन नहीं, ‘विश्वास विसर्जन’ होगा!

तुम्हारे पास अमेरिका का वीज़ा है, तो हमारे दिल के दरवाज़े खुले हैं

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