
ईरान और अमेरिका, इसराइल के बीच जो मौजूदा तनातनी चल रही है, वो जितनी ऊपर से परमाणु हथियारों को लेकर दिखती है, असल में उससे कहीं ज़्यादा गहराई में राजनीतिक भूचाल है। ये टकराव किसी बम या युरेनियम को लेकर नहीं, बल्कि ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनेई की सत्ता को खत्म करने की रणनीति का हिस्सा है।
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सत्ता परिवर्तन: पुराने फॉर्मूले की नई किस्त?
अगर पिछले कुछ दशकों की घटनाओं को देखें — इराक में सद्दाम हुसैन, लीबिया में गद्दाफी, और अफग़ानिस्तान में तालिबान — तो एक पैटर्न साफ़ दिखाई देता है, पहले मीडिया में देश को “ख़तरनाक” घोषित करो, फिर मानवाधिकार और लोकतंत्र की दुहाई देकर सत्ता परिवर्तन की स्क्रिप्ट चलाओ।
ईरान का परमाणु कार्यक्रम इस स्क्रिप्ट में सिर्फ़ एक किरदार है। असली निर्देशक का कैमरा खामेनेई की गद्दी पर फोकस किए बैठा है।
क्यों खामेनेई हैं आंख की किरकिरी?
आयतुल्लाह खामेनेई न केवल ईरान के धार्मिक सर्वोच्च नेता हैं, बल्कि वे देश की सेना, न्यायपालिका, मीडिया और राजनीति — सब कुछ नियंत्रित करते हैं। वो 1989 से सत्ता में हैं और अमेरिकी-इसराइली नीतियों के कट्टर विरोधी माने जाते हैं।
उनकी सोच कट्टर इस्लामी शासन की है और वे खुलेआम इसराइल को खत्म करने की बात कर चुके हैं। ऐसे में पश्चिमी देशों के लिए खामेनेई की मौजूदगी सिर्फ़ राजनीतिक समस्या नहीं, रणनीतिक खतरा बन चुकी है।
परमाणु हथियार तो बहाना है…
ईरान का परमाणु कार्यक्रम अब एक “नैरेटिव टूल” बन चुका है — जिसका इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय समुदाय में डर फैलाने और हस्तक्षेप को जायज़ ठहराने के लिए किया जा रहा है।
सवाल यह है कि क्या यह डर वाकई हकीकत है या फिर वही पुरानी रणनीति — जैसे इराक में “WMD” का झूठा हल्ला?
इसराइल का तड़का: आग में घी डालने वाला पड़ोसी
इस पूरे तनाव में इसराइल की भूमिका निर्णायक मानी जा रही है। हाल ही में इसराइल ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला कर दुनिया को बता दिया कि वो ईरान की शक्ति को किसी भी हाल में बढ़ने नहीं देगा।
इसराइल की असली चिंता खामेनेई का वैचारिक वर्चस्व है, न कि सिर्फ परमाणु तकनीक।
भारत और बाकी दुनिया पर असर
भारत के लिए यह टकराव सिर्फ समाचार नहीं, कूटनीतिक संकट है। ईरान से भारत को तेल और गैस के अलावा, अफग़ानिस्तान और मध्य एशिया तक रणनीतिक रास्ता मिलता है।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने तेहरान में रह रहे नागरिकों को निकाला है, लेकिन लंबे समय तक तनाव बना रहा तो व्यापार, ऊर्जा और सुरक्षा — तीनों पर असर तय है।
विचारधारा बनाम विचारधारा
ईरान और पश्चिम के बीच यह टकराव अब हथियारों का नहीं, विचारधाराओं का संघर्ष बन चुका है। एक तरफ इस्लामी गणराज्य की वैचारिक कट्टरता, दूसरी तरफ लोकतंत्र, मानवाधिकार और “नियम आधारित व्यवस्था” का दावा करने वाली पश्चिमी दुनिया। खामेनेई की सत्ता गिराना इस संघर्ष में वैचारिक विजय की तरह देखा जाएगा।
युद्ध परमाणु का नहीं, प्रतिष्ठा का है
ईरान और अमेरिका/इसराइल के बीच तनाव सिर्फ़ परमाणु बमों के बारे में नहीं है। असली जंग एक शख्स की सत्ता को गिराने की है, जिसका नाम है आयतुल्लाह अली खामेनेई।
जहां परमाणु कार्यक्रम सिर्फ़ बहाना है, वहीं सत्ता परिवर्तन असली मकसद है — और यही आज के मध्य-पूर्व में अस्थिरता की जड़ भी है।