लद्दाख के जंगलों में अब ‘रणनीतिक नक्शा बदलाव’, टेंशन हाई है बॉस!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

भारत अब सिर्फ बॉर्डर पर ही नहीं, नक्शे के अंदर भी स्ट्रैटेजिक मूव करने लगा है। लद्दाख के चांगथंग और काराकोरम वन्यजीव अभयारण्यों के नक्शे में बड़ा बदलाव प्रस्ताव केंद्र सरकार की फाइनल मंजूरी के लिए पहुंच चुका है। सीधे शब्दों में कहें तो – “भारत अब कागज़ पर भी सरहद मजबूत कर रहा है।”
19 सितंबर को हुई लद्दाख राज्य वन्यजीव बोर्ड की मीटिंग में ये प्रस्ताव रखा गया था।

1987 का नक्शा था गड़बड़ – अब GPS से होगा तय!

पहले 1987 में जो नक्शे बने थे, उनमें दिशाएं भी “थोड़ी धार्मिक” थीं — उत्तर कहाँ, दक्षिण कहाँ, भगवान भरोसे। अब नई साइंटिफिक सर्वे के बाद पता चला कि अभयारण्यों की वास्तविक सीमा 3-4 गुना बड़ी है।
इसलिए नया प्रस्ताव आया है –
 काराकोरम का क्षेत्रफल अब 16,550 वर्ग किमी
 चांगथंग का 9,695 वर्ग किमी

कुछ हिस्से इंसानी बस्तियों के पास होने से बाहर किए जा रहे हैं — कुल 1,742 वर्ग किमी काराकोरम से और 164 वर्ग किमी चांगथंग से घटाया जाएगा। इलाका अब भारत के “ईको-स्ट्रैटेजिक फोर्ट” की तरह होगा।

10+17 हॉट ज़ोन और वाइल्डलाइफ के लिए गलियारे – सैनिक स्टाइल में!

वन्यजीव संस्थान (WII) ने जांच कर “उच्च संरक्षण मूल्य” वाले 27 जोन चुने हैं — काराकोरम में 10, चांगथंग में 17। इन इलाकों में फेंसिंग नहीं, बल्कि ‘साइलेंट प्रोटेक्शन’ लागू होगी — यानि बाघ नहीं, बॉर्डर पर बायोलॉजिकल बैरियर! साथ ही 9 किमी के गलियारे बनाए जाएंगे ताकि जानवर भी फ्री मूवमेंट एन्जॉय करें — कहने को गलियारा वाइल्डलाइफ का, पर समझदार जानता है ये “स्ट्रैटेजिक कॉरिडोर” भी है।

टूरिज्म का बहाना, बॉर्डर की मजबूती का इशारा

जिन इलाकों को अभयारण्य से बाहर किया गया है, वहां के 67 और 45 गांव अब पर्यटन और लोकल इकोनॉमी के लिए ओपन होंगे।
सरकार का कहना है – “बड़े बिजनेस नहीं, लोकल लोगों को बढ़ावा।”
पर व्यंग्य यही कहता है – “जहां पर्यटक पहुंचा, वहां नेटवर्क पहुंचा; और जहां नेटवर्क पहुंचा, वहां निगरानी अपने आप हो गई।”

जनसंख्या घट रही, बॉर्डर खाली हो रहा – अब नेचर भी ड्यूटी पर!

लेह लद्दाख काउंसिल के चीफ एग्जीक्यूटिव पार्षद ताशी ग्याल्सन बोले – “लोग गांव छोड़ रहे हैं क्योंकि वहां बिजली-पानी-सड़क की कमी है।
लेकिन बॉर्डर गांव खाली हुए तो कौन रखेगा निगरानी?”
सरकार का जवाब – “वन्यजीव और ग्रामीण, दोनों हमारी सुरक्षा का हिस्सा हैं।”
यानि इस बार ‘ईकोलॉजी’ और ‘जियोपॉलिटिक्स’ की शादी हो गई है।

लद्दाख के मुख्य सचिव बोले – ‘लोग टूरिज्म करना चाहते हैं, पर नियमों में फंसे हैं’

पवन कोटवाल ने माना कि अभयारण्यों के भीतर रहने वाले लोग होमस्टे और छोटे टूरिज्म बिजनेस शुरू करना चाहते हैं, पर वन्यजीव अधिनियम की ‘लंबी अनुमति प्रक्रिया’ उनके रास्ते की दीवार बनी हुई है। सरकार अब सोच रही है कि “विकास और संरक्षण” दोनों को बैलेंस में रखा जाए –यानि अब जंगल भी सुरक्षित, और लोग भी सशक्त।

चीन बोलेगा – “ये इकोलॉजी नहीं, स्ट्रैटेजी है!”

भारत का यह कदम कूटनीतिक स्तर पर भी संदेश देता है – “हम अब सिर्फ फेंस नहीं, फ्लोरा-फॉना से भी बॉर्डर सिक्योर कर रहे हैं।”
जहां चीन पहाड़ों में सड़क बना रहा है, भारत वहां जंगलों में राजयोग रच रहा है।
इसे कहते हैं – “ग्रीन बॉर्डर डिप्लोमेसी।”

लद्दाख का नया नक्शा सिर्फ पर्यावरण सुधार नहीं, बल्कि भारत की सॉफ्ट-सिक्योरिटी स्ट्रैटेजी का हिस्सा है — जहां टूरिज्म, ट्रेड और टाइगर सब साथ-साथ चलेंगे।

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