गाज़ा की वो काली रात जिसने 104 आवाजें चुप कर दीं

Saima Siddiqui
Saima Siddiqui

गाज़ा पट्टी एक बार फिर गोलियों और बमों की आग में झुलस गई। मंगलवार रात इस्राइली वायुसेना (IDF) ने गाज़ा पर भीषण हमले किए, जिसमें 104 फ़िलिस्तीनी मारे गए, जिनमें 46 बच्चे और 20 महिलाएं शामिल हैं। अस्पतालों और सिविल डिफेंस एजेंसियों ने बताया कि हमले के बाद चारों ओर तबाही और अफरातफरी का माहौल है।

इस्राइली डिफेंस फ़ोर्सेज़ का कहना है कि उसने “दर्जनों आतंकवादी ठिकानों और कमांड सेंटरों” को निशाना बनाया। लेकिन सवाल वही पुराना है — जब बम गिरते हैं, तो आतंकवादी मरते हैं या इंसान?

“हमले के बाद फिर युद्धविराम” – IDF का बयान

इस्राइल ने सोशल प्लेटफॉर्म X (Twitter) पर कहा कि उसने हमास के उल्लंघनों के जवाब में यह कार्रवाई की, लेकिन अब “युद्धविराम को नए सिरे से लागू करना शुरू कर दिया गया है।”

IDF ने दावा किया कि उसने आतंकवादियों के 30 से अधिक कमांड ठिकाने नष्ट किए। बयान में जोड़ा गया, “हम युद्धविराम समझौते का पालन करेंगे, लेकिन किसी भी उल्लंघन का जवाब सख्ती से दिया जाएगा।”

यानि — पहले बम बरसाओ, फिर बैंड बजाओ कि ‘हम तो शांति चाहते हैं।’

ट्रंप की टिप्पणी: “सीज़फायर खतरे में नहीं, लेकिन जवाब ज़रूरी”

एशिया दौरे पर अमेरिकी राष्ट्रपति Donald Trump ने कहा कि “कुछ भी सीज़फायर को खतरे में नहीं डाल सकता।”
साथ ही यह भी जोड़ दिया कि “जब इस्राइली सैनिकों पर हमला होगा, तो इस्राइल को जवाब देना ही पड़ेगा।”

यानि शांति की बातें भी हथियारों की भाषा में ही हो रही हैं।

दुनिया क्यों देख रहे हैं ये युद्ध

गाज़ा का यह संघर्ष अब सिर्फ इस्राइल-हमास का नहीं रहा। इसमें अमेरिका, ईरान, रूस और यूरोप की राजनीतिक दिलचस्पी जुड़ चुकी है।
हर बम के पीछे कोई न कोई “डिप्लोमैटिक बयान” आता है और हर मौत पर “शांति वार्ता” की नई तारीख तय होती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, यह हमला उस युद्धविराम समझौते के तुरंत बाद हुआ है जिसे 10 अक्टूबर 2025 को लागू किया गया था — इसलिए यह घटना कूटनीतिक रूप से बेहद संवेदनशील मानी जा रही है।

मानवीय संकट और बच्चों की चीखें

गाज़ा के अस्पतालों में भीड़ है, सड़कों पर खून और मलबे का मंजर — यह सब उस दुनिया में हो रहा है जो “21वीं सदी की सभ्यता” पर गर्व करती है।

“सीज़फायर का मतलब क्या है?”

हर बार युद्धविराम की घोषणा होती है, और कुछ घंटों में मिसाइलें आसमान चीरती हैं। लगता है जैसे “सीज़फायर” अब एक ब्रेक का नाम नहीं, बल्कि अगली लड़ाई की टीज़र क्लिप बन गया है।

“शांति अब ट्वीट्स में मिलती है, जमीन पर नहीं।”

गाज़ा की इस रात ने फिर यह साबित किया कि जब सियासत में बारूद घुल जाए, तो मासूमियत की कोई उम्र नहीं बचती। संयुक्त राष्ट्र और वैश्विक शक्तियाँ बयान जारी करती रहेंगी, लेकिन सवाल वही रहेगा — क्या कभी धरती पर ऐसा युद्धविराम होगा जो सचमुच टिकेगा?

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