India 2.0 को साझेदार चाहिए, संन्यासी नहीं!” – जयशंकर का यूरोप को कड़क जवाब

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि)

भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि कूटनीति अब सूट-बूट वाली चुप्पी नहीं, माइक्रोफोन पर सूटेड-बूटेड तंज है। और ये तंज यूरोप के उस हिस्से पर पड़ा जो आज भी मानता है कि “अगर भारत को दोस्ती चाहिए, तो उससे पहले वह अपने नैतिक टेस्ट में पास हो!”

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आइसलैंड की बर्फीली ठंड में, जयशंकर ने यूरोप के गर्म मिज़ाज को ठंडा किया। कहा –

“हमें पार्टनर चाहिए, पंडित नहीं। वो भी ऐसे पंडित जो खुद के घर में तो प्रवचन न मानें, लेकिन दूसरों पर श्लोकों की बारिश कर दें।”

यानि साफ कहिए, भारत 5G में चल रहा है, और यूरोप आज भी 2G वाले एटीकेट्स में फंसा है।

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जिस मंच पर बात हो रही थी, उसका नाम था Arctic Circle India Forum — और उस मंच पर जयशंकर ने जो कहा, उससे यूरोप के दोगलेपन पर ध्रुवीय रोशनी पड़ गई।

“रियलिटी चेक का मौसम आ चुका है, यूरोप चाहे तो गर्म चाय पी ले… नहीं तो बर्फ चाटे।”

पाकिस्तान, आतंकवाद और यूरोप का ‘Selective Silence’

जिस समय भारत अपने सैनिकों की शहादत के बाद पाकिस्तान पर वैश्विक समर्थन जुटा रहा है, उसी समय कुछ यूरोपीय देश मानवाधिकार की अंधेरी गली में भारत को घसीटने की कोशिश कर रहे हैं।

मतलब ये कि,
यूरोप अपने आतंकियों से कहता है – ‘नॉट इन माई बैकयार्ड’
और भारत से कहता है – ‘प्लीज़ बी टॉलरेंट!’

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रूस-यूक्रेन युद्ध पर पश्चिम की नीति को जयशंकर ने दो शब्दों में समेट दिया – “मूल बातों की अनदेखी।”

“रूस को सुलह से बाहर रखकर समाधान खोजना वैसा ही है,
जैसे कि चाय में दूध के बिना मलाई ढूंढना।”

और अमेरिका के साथ रिश्तों पर भी शानदार punchline:

“मतभेदों के चश्मे से मत देखो,
हितों की दूरबीन लगाओ, तभी सहयोग का नज़ारा मिलेगा।

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जयशंकर का संदेश सीधा था –
“India 2.0 को Version 0.5 से Advice नहीं चाहिए।”

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जयशंकर की विदेश नीति अब “गांधी टोपी और गुलाब” से आगे निकलकर Google Calendar और Global Strategy तक पहुंच गई है। यूरोप को अब समझना होगा कि भारत अब कोई दुनिया की वर्कशॉप में बैठा छात्र नहीं, बल्कि स्पीकर और इन्वेस्टर दोनों है।

भारत को उपदेश देने से पहले, यूरोप को अपना होमवर्क कर लेना चाहिए — नहीं तो जयशंकर जैसे प्रोफेसर मार्क्स ही नहीं, माइक्रोफोन से भी काट देंगे!”

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