देवदास 1955: जब दिलीप कुमार ने ‘दर्द’ को एक्टिंग बना दिया!

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

1955 की देवदास सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के emotional syllabus का अनिवार्य पाठ है। शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित ये फिल्म बिमल रॉय की निर्देशन कला और दिलीप कुमार की संजीदा अदाकारी का ऐसा संगम है जिसे देखकर आज भी दिल टूटता है और आंखें नम हो जाती हैं।

प्यार, समाज और चिट्ठियों के बीच पिसता देवदास

कलकत्ता से लौटा देवदास (दिलीप कुमार), गांव की पारो (सुचित्रा सेन) से बचपन का प्यार चाहता है… पर जात-पात, समाज, और पारो के पिताजी की ego-powered शादी प्लानिंग सब तबाह कर देती है।
फिर शुरू होता है वो सिलसिला जो Devdas को ‘Emotion का national brand ambassador’ बना देता है।

एंट्री होती है चंद्रमुखी की — और शराब की!

कलकत्ता में देवदास की मुलाक़ात होती है चंद्रमुखी (वैजयंतीमाला) से — एक तवायफ, जो शायद बॉलीवुड इतिहास की सबसे classy दिलवाली तवायफ थी।
पर देवदास को न चंद्रा का प्यार समझ आया, न पारो की नाराज़गी — समझ आया तो सिर्फ़ ‘एक पैग और’।

मोहब्बत तो मिली नहीं, मौत ही सही

शराब, पछतावा और इगो के जले में तड़पता देवदास पारो के दरवाज़े पर आकर दम तोड़ देता है। और उसके साथ टूट जाती है हर दर्शक की रूह, जो ये सोचता है — “अगर Devdas therapy ले लेता, तो शायद sequel बनती!”

दिलीप कुमार का ‘दर्द का डिप्लोमा’

देवदास के रोल में दिलीप कुमार ऐसे डूबे कि उन्हें “ट्रैजेडी किंग” का खिताब मिल गया। सुचित्रा सेन की पारो एकदम शालीन विद्रोह का चेहरा बनीं, और वैजयंतीमाला की चंद्रमुखी — शायद अब तक की सबसे संवेदनशील तवायफ। मोतीलाल के चुन्नी बाबू को देख आज भी लोग कहते हैं — “सबसे हैंडसम हैंगओवर वाला दोस्त!”

जब दर्द को धुनों में पिरोया गया

एस.डी. बर्मन का संगीत और साहिर लुधियानवी के बोल मिलकर ऐसा असर छोड़ते हैं जैसे हर गाना Devdas की डायरी का एक पन्ना हो।
“किसको खबर थी…” सुनते ही आज भी दिल heavy हो जाता है, चाहे आपके पास पारो हो या न हो!

मान्यता और… वैजयंतीमाला का इनकार!

  • दिलीप कुमार को मिला सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर

  • वैजयंतीमाला ने सहनायिका पुरस्कार ठुकरा दिया: “मैं कोई साइड रोल थोड़ी थी!”

  • नेशनल अवॉर्ड और इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में एंट्री — Because Devdas didn’t just die, he traveled internationally.

पहला Emo Influencer?

अगर देवदास 2025 में होता, तो Instagram पर reels बना रहा होता:

“Paaro ने seen कर लिया लेकिन reply नहीं किया… आओ दोस्तों, चंद्रमुखी के कोठे पर meet-up रखते हैं!”

देवदास सिर्फ़ एक फिल्म नहीं, इमोशन्स की यूनिवर्सिटी है

अगर आपने देवदास (1955) नहीं देखी, तो आपने प्यार में हारना नहीं सीखा। और अगर देखी है, तो आप जानते हैं — कभी-कभी प्यार में हार कर भी यादों में ज़िंदा रहा जाता है।

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