लाल किला ब्लास्ट ने दिलाया वो दर्द, जब राजधानी बार-बार कांपी थी

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

राजधानी दिल्ली सोमवार शाम एक बार फिर लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास हुए धमाके से हिल उठी। इस हादसे में अब तक 8 लोगों की मौत और कई घायल हो चुके हैं। लेकिन यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली में धमाके ने राजधानी की नींद उड़ाई हो।

दिल्ली की सड़कों ने इससे पहले भी कई बार बारूद की गंध महसूस की है। आइए जानते हैं उन सात दर्दनाक धमाकों के बारे में जब पूरी दिल्ली दहल गई थी।

29 अक्टूबर 2005 — दिवाली से पहले मौत की डिलीवरी

दिवाली की रौनक से ठीक पहले पहाड़गंज, गोविंदपुरी और सरोजिनी नगर बाजारों में एक के बाद एक धमाके हुए। इन सिलसिलेवार बम धमाकों में 60 लोगों की मौत और 200 से अधिक घायल हुए। दिल्ली का त्योहार तब शोक में बदल गया।

7 सितंबर 2011 — दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर खून और अफरा-तफरी

दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट नंबर 5 के बाहर हुए धमाके ने सिस्टम को झकझोर दिया। इस बम विस्फोट में 15 लोगों की मौत और 79 घायल हुए थे। हमले की जिम्मेदारी एक आतंकी संगठन ने ली थी।

13 सितंबर 2008 — दिल्ली के दिल में सीरियल ब्लास्ट

करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश-1 जैसे व्यस्त इलाकों में बम धमाकों ने लोगों में दहशत फैला दी। इस दिन को दिल्ली के इतिहास का सबसे डरावना शनिवार कहा गया। 100 से ज़्यादा लोग घायल और कई मारे गए।

29 अक्टूबर 2005 — सरोजिनी नगर फिर बना टारगेट

यह वही दिन था, जब दिल्ली का सबसे पसंदीदा शॉपिंग स्पॉट सरोजिनी नगर मार्केट लहूलुहान हो गया था। विस्फोट इतने शक्तिशाली थे कि दुकानें उड़ गईं और दिल्ली का दिल टूट गया।

18 जून 2000 — लाल किले के पास दो धमाके

यह वही जगह है जहां आज फिर हादसा हुआ है। 18 जून 2000 को लाल किले के पास दो बम धमाके हुए थे, जिनमें दो लोगों की मौत हुई थी। 22 साल बाद फिर वहीं धमाका होना — एक डरावना déjà vu है।

21 मई 1996 — लाजपत नगर बाजार में तबाही

दिल्ली का भीड़भाड़ वाला लाजपत नगर मार्केट भी बम धमाकों की चपेट में आया था। 13 निर्दोष लोग मारे गए, बाजार की हर दुकान बारूद की गंध से भर गई। लाजपत नगर आज भी उस मंजर को नहीं भूला।

अब 2025 — लाल किला मेट्रो ब्लास्ट

10 नवंबर 2025, दिल्ली फिर दहली — इतिहास खुद को दोहराता दिखा जब लाल किला मेट्रो स्टेशन के पास एक कार में भीषण धमाका हुआ। 8 लोगों की मौत, 14 घायल, और राजधानी एक बार फिर सवालों के घेरे में — “कब तक दिल्ली खून से लथपथ होगी, और बारूद की गंध हवा में घुलती रहेगी?”

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