
लोकसभा में पेश हुआ संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025 — लेकिन इसके साथ ही शुरू हो गया राजनीतिक घमासान।
इस नए प्रस्ताव के तहत अगर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या मंत्री लगातार 30 दिन हिरासत में रहते हैं, तो 31वें दिन उनका पद स्वत: समाप्त हो जाएगा।
अमित शाह ने क्या कहा?
गृह मंत्री अमित शाह ने इस बिल को “राजनीतिक शुचिता” का प्रतीक बताते हुए कहा:
“हम जनता के आक्रोश को समझते हैं। भ्रष्टाचार से समझौता नहीं हो सकता। अगर कोई संवैधानिक पद पर रहते हुए जेल में हो, तो वह पद का दुरुपयोग कर सकता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि यह बदलाव “राजनीतिक नैतिकता में सुधार और पारदर्शिता” की दिशा में एक बड़ा कदम है।
राहुल गांधी का पलटवार: ‘मध्यकालीन राजा बनने की कोशिश’
कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिल की तीखी आलोचना करते हुए कहा:
“बीजेपी हमें फिर उसी ज़माने में ले जा रही है, जब राजा मनमर्ज़ी से किसी को भी हटा देता था। अब गिरफ़्तार करो, 30 दिन बैठाओ, और पद से बाहर निकालो। ये लोकतंत्र नहीं तानाशाही है।”
DMK चीफ स्टालिन बोले: ‘ये तो लोकतंत्र की हत्या है’
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसे “काला कानून” बताया। उन्होंने आरोप लगाया:
“ये बिल संघीय ढांचे को तोड़ने, विपक्ष को कुचलने और राज्यों की आवाज़ को दबाने की साज़िश है।”
स्टालिन ने देश की सभी लोकतांत्रिक ताकतों को एकजुट होने की अपील भी की।
बिल में क्या है खास?
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30 दिनों तक हिरासत में रहने वाले प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री/मंत्री का पद स्वतः समाप्त
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बिना दोष सिद्धि भी पद हट सकता है
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संसद की मंजूरी के बाद संविधान में संशोधन लागू
विपक्ष की चिंता: कहीं इसका दुरुपयोग न हो जाए!
विपक्ष को डर है कि:
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राजनीतिक बदले की भावना से ईडी/CBI का दुरुपयोग हो सकता है
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चुने हुए नेताओं को साजिशन जेल में रखकर पद छीना जा सकता है
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लोकतंत्र की आत्मा पर यह हमला है
सवाल उठता है: क्या वाकई यह सुधार है या सत्ता का विस्तार?
इस बिल से जुड़ी असल बहस यही है — क्या यह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त कदम है, या फिर विपक्ष को कमजोर करने का नया तरीका?
जहाँ एक ओर सरकार इसे “राजनीतिक शुद्धिकरण” बता रही है, वहीं विपक्ष इसे “चुनाव से चुने गए नेताओं की अनदेखी” और “तानाशाही की शुरुआत” कह रहा है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि ये बिल संसद से पास होता है या देश में एक नई सियासी आग को जन्म देता है।
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