
साल 2012, कांग्रेस की ‘यंग ब्रिगेड’ की वो मशहूर तस्वीर — सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, मिलिंद देवड़ा, आरपीएन सिंह और जितिन प्रसाद।
पांच चेहरे, पांच उम्मीदें… और पांचों को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कि ये ही कांग्रेस का भविष्य हैं।
कहानी में ट्विस्ट?
2025 में इन पाँच में से तीन बीजेपी के ऑफिस में बैठकर चाय पी रहे हैं — और एकमात्र सचिन पायलट अब भी कांग्रेस के वफादार कैडेट की तरह डटे हुए हैं।
सचिन पायलट: कांग्रेस के “लास्ट मैन स्टैंडिंग”
राजस्थान में पिछली सरकार बनाने का श्रेय भले ही कैंपेन में “कांग्रेस” को मिलता हो, पर ज़मीनी मेहनत और 24×7 दौड़भाग का असली क्रेडिट — सचिन पायलट को जाता है।
लेकिन…सीएम बने अशोक गहलोत, और पायलट को मिला — “इंतज़ार करिए, आपके टाइम आएगा”… टाइप ट्रीटमेंट।
पूरे कार्यकाल में सचिन के खेमे के विधायकों को भी यही मैसेज गया- “सचिन अच्छे लड़के हैं… बस थोड़ा कमजोर हैं!”
राजनीति में इसे कहते हैं —“साइकोलॉजिकल गेम्स 101।”
बाकी चार: व्यवहारिक?
1. ज्योतिरादित्य सिंधिया
कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जाकर M.P. सरकार गिरा दी, साथ में मिनिस्ट्री भी ले ली। राजनीति में इसे “करियर एक्सेलेरेटर पैकेज” कहते हैं।

2. जितिन प्रसाद
U.P. में कांग्रेस की कोई बत्ती नहीं जल रही थी, तो उन्होंने BJP की ट्यूबलाइट जला ली।
3. आर.पी.एन. सिंह
सीधे “VIP चेहरा” बनकर BJP एंट्री — No complications.
तो सचिन क्यों नहीं गए अभी तक?
क्योंकि भाई वफादारी, सिद्धांत और सब्र का कॉम्बो आज भी उतना दुर्लभ है जितना कांग्रेस में दो गुटों का साथ बैठना। कांग्रेस के अंदरूनी घमासान, गहलोत-पायलट तनातनी, अपमान, साइडलाइनिंग… सब सहकर भी सचिन आज कांग्रेस में टिके हैं।
कई लोग कहते हैं —“ये पार्टी के लिए वफादारी है।”
कुछ कहते हैं — “ये सचिन की अटल उम्मीद है कि कभी न कभी पार्टी उन्हें उनका हक देगी।”
और कुछ कहते हैं — “भाई, शायद टाइमिंग देख रहे हों!”
राजनीति कभी स्थिर नहीं रहती — पर 2012 की तस्वीर हमें हमेशा याद दिलाएगी कि चेहरे एक जैसे रहते हैं… पार्टियाँ बदल जाती हैं।
