111 साल बाद भी “चारबाग स्टेशन से ट्रेनें भी फुसफुसा के निकलती हैं!”

महेंद्र सिंह
महेंद्र सिंह

लखनऊ का चारबाग स्टेशन सिर्फ ट्रेन पकड़ने की जगह नहीं, यह एक जीती-जागती म्यूज़ियम है।
1914 में बिशप जॉर्ज हर्बर्ट ने इसकी नींव रखी और जब 1923 में बनकर तैयार हुआ, तो अंग्रेजों ने कहा—”अब भारतीयों को छांव तो मिल गई, लेकिन सीट नहीं!”
9 साल लगे इसे बनाने में, और 70 लाख रुपये खर्च हुए (जो उस वक्त का “रेल बजट” ही था!)।

बिना आवाज़ वाली ट्रेनें—जादू नहीं, आर्किटेक्चर है!

चारबाग स्टेशन की सबसे दिलचस्प बात ये है कि ट्रेन की आवाज़ बाहर नहीं आती। क्यों? क्योंकि इसका आर्किटेक्ट ऐसा था जैसे अंग्रेजों को भारतीयों की शिकायतें नहीं सुननी थीं, वैसे ही उन्होंने आवाज़ भी रोक दी। ट्रेनें आती हैं, जाती हैं, लेकिन मोहल्ले वाले कहते हैं—“हम तो समझे मेट्रो गुज़री होगी!”

अंग्रेजों के लिए कोच, भारतीयों के लिए ‘कमरा नंबर बंद’

इतिहासविद् रवि भट्ट बताते हैं, चारबाग स्टेशन का वह कमरा जहां भारतीयों को बंद किया जाता था—आज रिकॉर्ड रूम है। ब्रिटिश लोग पहले बैठते थे, फिर भारतीयों को टिकट दिया जाता था। वो रैक और सीढ़ी आज भी हैं। बस अब फर्क ये है कि कोई टिकट नहीं कटता, फाइलें चढ़ती हैं।

नींव में रखे गए थे सिक्के और अखबार: “कॉइन बेस्ड स्टेशन!”

1925 में स्टेशन के विस्तार के दौरान नींव में अखबार और सोने के सिक्के रखे गए थे। मतलब अंग्रेजों को इतिहास से भी ज्यादा “हेडलाइन” की चिंता थी। Breaking News, 1925: “Station ready, Coins buried, Indians still waiting outside.”

30-30 हजार लीटर की टंकियां और अंग्रेजों का मापक यंत्र

छह टंकियों में आज भी अंग्रेजों का जमाना झांकता है। मापक यंत्र जो तब लगाया गया था, आज भी वैसा ही काम करता है। नये सिस्टम आ गए, लेकिन पुराना मापक आज भी कहता है, “सर, पानी भर चुका है, अब इतिहास भी बहा दो क्या?”

ईस्ट इंडिया की अलमारी और मोनोलॉग: ‘Made in Empire’

स्टेशन पर मौजूद कुछ अलमारियां और मेज़ें आज भी ईस्ट इंडिया रेलवे का लोगो proudly लिए खड़ी हैं। अब वो इस्तेमाल नहीं होतीं, लेकिन उन्हें देखकर आप समझ सकते हैं कि लकड़ी सिर्फ फर्नीचर नहीं होती, वो भी इतिहास कह सकती है।

की-मैन और कॉलमैन: WhatsApp से पहले की Notification सर्विस

डिजिटल इंडिया आ गया, लेकिन की-मैन और कॉलमैन आज भी ड्यूटी पर हैं। पायलट और गार्ड को उठाने का जिम्मा कॉलमैन का होता है।
“भाईसाहब, आपकी ट्रेन छूट न जाए, ऊपर वाला नहीं… कॉलमैन आपको उठाएगा!”

भाप का इंजन: जो अब सिर्फ तस्वीरों में नहीं, डीआरएम ऑफिस में है!

वाईपी 2616 मीटर गेज इंजन आज भी “टाइम के रेत पर पड़े फुटप्रिंट्स” के साथ रखा है। Tata Locomotive ने बनाया था, अब वो सिर्फ सेल्फी बैकड्रॉप बन चुका है।

कुछ फैक्ट्स जो आपको गूगल में भी नहीं मिलेंगे (शायद)

  • पहली इमारत बनने में 9 साल लगे।

  • स्टेशन के प्लैटफॉर्म नंबर 8 के पास 900 साल पुरानी खम्मनपीर बाबा की मजार है।

  • 26 दिसंबर 1916 को यहीं पं. नेहरू और महात्मा गांधी की ऐतिहासिक मुलाकात हुई थी।

  • स्टेशन को राजपूत, मुगल और अवधी आर्किटेक्चर का ताज मिला है।

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