
द लैंसेट जर्नल में प्रकाशित नई स्टडी के मुताबिक, कम और मध्यम आय वाले देशों में स्तन और सर्वाइकल कैंसर से पीड़ित महिलाओं में से केवल 20% से भी कम की बीमारी शुरुआती दौर में पहचान हो पाती है। वहीं उच्च आय वाले देशों में ये संख्या हर पांच में से दो महिलाओं तक पहुंचती है।
क्या है बड़ी वजह?
अध्ययन में पाया गया है कि कम आय वाले देशों में बीमारी तब तक डिटेक्ट नहीं होती जब तक कि वह काफी बढ़ चुकी होती है। इसका सीधा असर महिलाओं के जीवन पर पड़ता है, क्योंकि देर से पता चलने की वजह से इलाज का ऑप्शन कम रह जाता है और बचाव की संभावना घट जाती है।
‘वीनसकैंसर’ परियोजना और आंकड़ों का विश्लेषण
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के कैंसर सर्वाइवल ग्रुप के शोधकर्ताओं ने 39 देशों की 2.75 लाख से ज्यादा महिलाओं के आंकड़ों का गहराई से विश्लेषण किया। इस अध्ययन ने निदान, उपचार और अंतरराष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुपालन के रुझानों को भी जांचा।
स्क्रीनिंग और सामाजिक बाधाएं – बड़ी चुनौती
शोधकर्ताओं ने बताया कि प्राथमिक स्वास्थ्य ढांचे की कमी, स्क्रीनिंग सुविधाओं की अनदेखी और सामाजिक बाधाएं जैसे टैबू, जागरूकता की कमी, और आर्थिक तंगी इन देशों में कैंसर के देर से पता चलने के मुख्य कारण हैं।

क्या हो सकता है समाधान?
स्मार्ट स्क्रीनिंग प्रोग्राम्स, बेहतर हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर और जागरूकता अभियान ही इन आंकड़ों को सुधारने में मदद कर सकते हैं। तभी तो ‘जल्दी पकड़ो, जल्दी बचाओ’ वाली कहावत सही साबित होगी।
