
पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत के झोब ज़िले में आतंकियों की नई ट्रैफिक पॉलिसी देखने को मिली — जहां यात्री टिकट चेकिंग नहीं, बल्कि जातीय पहचान पर बस से उतारे गए और गोली मार दी गई।
क्या हुआ था?
क्वेटा से पंजाब जा रही दो यात्री बसों को झोब ज़िले में अज्ञात बंदूकधारियों ने रोका। लेकिन ये जांच पास या मास्क की नहीं थी — ये ज़ात-पात आधारित नरसंहार का पूर्वाभ्यास था। आतंकियों ने नौ पंजाबी यात्रियों को पहचान कर बस से नीचे उतारा और निर्ममता से मार डाला।
सरकारी रटी-रटाई प्रतिक्रिया
झोब के असिस्टेंट कमिश्नर नवीद आलम ने कहा, “हां, नौ लोग मारे गए हैं, शवों को भेजा जा रहा है।” बयान में संवेदना कम और ‘डिलीवरी ट्रैकिंग’ की झलक ज़्यादा थी।
बलूचिस्तान सरकार के प्रवक्ता शाहिद रिद ने बताया कि कलात, मस्तुंग और झोब में हमले किए गए, लेकिन सुरक्षा बल तुरंत एक्शन में आए — शायद “हमले के बाद की रिवाइंडिंग एक्सरसाइज़” का हिस्सा रहा होगा।
सुरक्षा व्यवस्था: ‘अलर्ट मोड’ या ‘रेट्रो मोड’?
प्रवक्ता ने दावा किया, “हम पूरी तरह सतर्क हैं।” सवाल ये है कि ये सतर्कता घटना के बाद क्यों एक्टिवेट होती है?
बलूचिस्तान में यात्रियों के लिए बस में सफर करना अब एडवेंचर स्पोर्ट जैसा बनता जा रहा है — फर्क बस इतना है कि वहां हेलमेट नहीं, बुलेटप्रूफ जैकेट चाहिए।
पंजाबियों की पहचान बनाम पाकिस्तान की पहचान
यह वारदात दिखाती है कि पाकिस्तान में जातीय-नस्लीय पहचान ही मौत का कारण बन सकती है। “तुम कहां के हो?” अब एक सवाल नहीं, एक फाइनल सजा का आधार बन गया है। और हत्यारों की हिम्मत ऐसी कि वे बसों को अपनी चलती अदालत बना चुके हैं।
पाकिस्तान में अब GPS नहीं, DNA पूछकर यात्रा करें?
बलूचिस्तान में हालात ऐसे हैं कि यात्रियों को GPS नहीं, GPR (जनरल पहचान रिपोर्ट) लेकर चलना चाहिए। कौन जानता है कि अगला टोल प्लाजा पास मांगने के बजाय पासपोर्ट पूछे?