
इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में हालात कुछ बदले-बदले से हैं। अब सिर्फ जाति या जनाधार से वोट नहीं मिलते, भाई साहब! इस बार नेता बनने के लिए आपको थोड़ा बहुत पढ़ा-लिखा भी होना पड़ेगा। चुनाव आयोग को दिए नामांकन पत्रों से जो तस्वीर सामने आई है, वो तो कहती है – “अब राजनीति में भी रिज़्यूमे दिखाना पड़ेगा।”
कौन कितने पानी में… या कहें – कितने ग्रेड में?
66 उम्मीदवार ग्रेजुएट हैं, 28 पोस्ट ग्रेजुएट, 17 ने LLB, 12 इंजीनियर, 12 पीएचडी, 5 एमबीबीएस, 3 MBA,
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2 MPhil, और 3 D.Litt वाले भी हैं। अब बताइए, कौन कहता है बिहार में शिक्षा की कद्र नहीं?
इंजीनियर-डॉक्टर-डॉक्टरेट – सारा टैलेंट इधर ही है!
सिर्फ सिलेबस ही नहीं, पूरा प्रोफेशनल कोर्स लेकर नेता मैदान में उतरे हैं।
इंजीनियरिंग वाले:
लखीसराय से विजय कुमार सिन्हा, राजगीर से विश्वनाथ चौधरी, और साहेबगंज से राजू कुमार सिंह जैसे नेता तो सीधे “डिग्री लेकर” वोट मांग रहे हैं।
डॉक्टर्स की टीम:
राजद और भाजपा के पास MBBS वाले नेता भी हैं – डॉ. करिश्मा, डॉ. संजीव, डॉ. सुनील – अब राजनीति में भी स्टेथोस्कोप की एंट्री हो चुकी है।

MBA और MPhil भी हाजिर!
Amar Paswan, Komal Singh और Sanjay Saraogi जैसे नेता अपने मैनेजमेंट स्किल्स से वोटरों को ‘कन्विंस’ कर रहे हैं।
पीएचडी वाले बोले – “हम ही असली नीति-निर्माता!”
राजनीति में इस बार डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की भरमार है। डॉ. संजीव चौरसिया, डॉ. रामानंद यादव से लेकर चंदन कुमार तक सब मैदान में हैं – नीतियों की चीरफाड़ करने के लिए तैयार!
लेकिन… 8% ऐसे भी जो बोले – “भाई हमको अनुभव है!”
सिर्फ पढ़ाई से क्या होता है? बिहार में अब भी कुछ उम्मीदवार ऐसे हैं जो स्कूल की दहलीज से आगे नहीं बढ़े, पर जनता उन्हें “मास्टर” मानती है।
कुल 8% उम्मीदवार नॉन-मैट्रिक हैं। उनमें कुछ साक्षर हैं, और कुछ ने सातवीं-आठवीं तक पढ़ाई की है। लेकिन जनाधार ऐसा कि डिग्रीधारी भी पानी भरें।
“पढ़ाई अच्छी बात है, पर नेता कैसा होना चाहिए?”
बिहार की राजनीति अब क्लासरूम से निकल कर फील्ड में आ चुकी है। जहां वोटर अब डिग्री भी मांग रहा है।
पर एक पुरानी कहावत याद दिला दें – “डिग्री जरूरी है, पर दिल और दिमाग का कनेक्शन उससे भी ज़्यादा!”
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