“Voter अधिकार यात्रा” या “Voter डर यात्रा”? नई पॉलिटिकल पिक्चर शुरू!

गौरव त्रिपाठी
गौरव त्रिपाठी

बिहार की सियासी गर्मी अब सड़कों पर उतर रही है। 17 अगस्त से कांग्रेस और INDIA गठबंधन के नेता एक नयी यात्रा शुरू करने जा रहे हैं — नाम है “वोटर अधिकार यात्रा”

अब इस यात्रा का असली मकसद क्या है?
सादा जवाब: हर वोटर को उसका अधिकार दिलाना।
व्यंग्यात्मक जवाब: बीजेपी की ‘वोट कटिंग मशीन’ को शॉर्ट-सर्किट करना।

“नाम काटो योजना” बनाम “नाम जोड़ो अभियान”

कांग्रेस नेता पवन खेड़ा का दावा है कि, “वोट काटना एक षड्यंत्र है — न सिर्फ़ नाम काटना, बल्कि पहचान छीनना है।”

अब ये बयान इतना भावुक था कि वोटर ID कार्ड ने भी रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर रोते हुए कहा:

“मुझे बचा लो, मेरी जात भी काट दी!”

पवन जी का आरोप है कि भाजपा ने फर्ज़ी वोट जोड़ने और असली वोट हटाने की अनोखी डिजिटल जुगलबंदी शुरू कर दी है, जैसे Netflix पर “स्कैम 2025” रिलीज़ हो रहा हो।

राहुल और तेजस्वी: नया पॉलिटिकल ब्रोमांस?

कांग्रेस के राहुल गांधी और राजद के तेजस्वी यादव इस यात्रा में साथ चलने वाले हैं।
तेजस्वी ने कहा:

“कल से हम सड़क पर उतरेंगे। हर ज़िले में जाएंगे। हर वोटर से मिलेंगे।”

राजनीतिक पंडित कह रहे हैं,

“जहाँ राहुल और तेजस्वी मिल जाएं, वहाँ NDA को सावधान हो जाना चाहिए। और मौसम विभाग को भी… क्योंकि बिहार की हवा बदल सकती है।”

अब Voter भी पूछ रहा है – “मैं हूं कौन?”

इस यात्रा के पीछे एक और कहानी है – AI-driven वोटर लिस्ट साफ-सफाई अभियान
सवाल ये नहीं कि आपका नाम वोटर लिस्ट में है या नहीं, सवाल ये है कि वो नाम किसके नाम से जोड़ा गया है?

कुछ जगहों पर तो

“रमेश यादव” बन चुके हैं “Rahim Khan”
“Sita Devi” की उम्र हो गई है 134 साल

AI भी सोच में पड़ गया है – “मैं डेटा ठीक कर रहा हूं या लोकतंत्र की सर्जरी कर रहा हूं?”

सुप्रीम कोर्ट भी बोला – “इतना मत काटो भाई!”

पवन खेड़ा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस वोटर लिस्ट के झमेले में हस्तक्षेप करना पड़ा। अब ये पहली बार नहीं जब कोर्ट को लोकतंत्र का टेम्परेचर चेक करना पड़ा हो।

वोटर लिस्ट साफ करने का काम इतना सफाई वाला निकला कि अब तो लोग अपना आधार कार्ड लेकर डीएम ऑफिस में पूछ रहे हैं – “सर, मैं अब भी मौजूद हूं ना?”

यात्रा तो शुरू है, लेकिन रास्ता टेढ़ा है

कांग्रेस और INDIA गठबंधन के लिए ये यात्रा सिर्फ़ वोट मांगने की यात्रा नहीं है – ये एक ‘Digital Dignity Campaign’ जैसा बन चुका है।

लेकिन सवाल ये भी है:

  • क्या जनता इस यात्रा को गंभीरता से लेगी या फिर इसे भी एक “प्री-पोल ड्रामा” मानकर स्किप कर देगी?

  • क्या भाजपा इसे “रोने-धोने की यात्रा” बताएगी और जवाब में “विकास ट्रैक यात्रा” निकाल देगी?

जवाब आपको जल्द ही टीवी डिबेट्स, ट्विटर ट्रेंड्स और व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी में मिल जाएगा।

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