लखीमपुर : कबीरधाम सत्संग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने भारतीय संस्कृति की रक्षा में महापुरुषों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि हम सभी को भारतीय संस्कृति को अपनाते हुए अपने जीवन को इस तरह से जीने की आवश्यकता है, जिससे समाज और राष्ट्र का भला हो सके। भागवत के अनुसार, भारतीय संस्कृति के तत्व न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन को शुद्ध करते हैं, बल्कि समाज और राष्ट्र की भलाई के लिए भी आवश्यक हैं।
आत्मशुद्धि और सेवा का महत्व
डॉ. भागवत ने भारतीय समाज को आत्मशुद्धि और कृतज्ञता के माध्यम से समाज और राष्ट्र के उत्थान की दिशा में काम करने का आह्वान किया। उनका कहना था कि भौतिक सुखों से ऊपर उठकर, आत्मा की शांति और समर्पण की भावना से जीवन को दिशा देनी चाहिए। समाज के बीच सामूहिक सद्भाव और भारतीय परंपराओं को समझने की आवश्यकता है, ताकि हम सब अपने जीवन में संतुलन और शांति ला सकें।
भारतीय संस्कृति और समाज में एकता की आवश्यकता
संघ प्रमुख ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय समाज का मूल आधार परिवार और सामाजिक संबंध हैं। उन्होंने कहा कि भौतिक सुख के बजाय आत्मिक शांति और समर्पण की भावना से जीवन को दिशा देने की आवश्यकता है। उन्होंने यह भी बताया कि हमें समाज में भेदभाव को समाप्त करते हुए सबको एकता की दिशा में आगे बढ़ने की आवश्यकता है।
कबीर की वाणी और सामाजिक चेतना
भागवत ने कबीर की वाणी का उल्लेख करते हुए कहा कि यह सिर्फ भक्ति नहीं, बल्कि समाज में चेतना जागृत करने का माध्यम है। उनका विचार था कि कबीर की विचारधारा आज भी समाज को सही दिशा देने की क्षमता रखती है, और संघ इसी विचारधारा को समाज में समरसता, संतुलन और संस्कारों का संचार करने के लिए कार्यरत है।
दान की भावना और भारतीयता का बोध
संघ प्रमुख ने एक किस्से का जिक्र करते हुए यह बताया कि हमें भारतीयता का बोध और भारतीय संस्कृति को अपनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति का असली सार उसकी दान की भावना में छिपा है, जिसमें न तो घमंड है, न किसी प्रकार का निजी लाभ की सोच। भारत ने हमेशा दुनिया को प्रेम और ज्ञान दिया, लेकिन कभी इसे पेटेंट नहीं किया। यही भारतीयता का असली रूप है।
जीवन में भोग और स्वार्थ से दूर रहकर सेवा का मार्ग अपनाना
डॉ. भागवत ने यह भी कहा कि जीवन का उद्देश्य भोग की लालसा और स्वार्थ की दौड़ नहीं होना चाहिए। बल्कि, सच्चा सुख आत्मकल्याण, सेवा और सामाजिक उत्तरदायित्व की भावना में निहित है। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि ज्ञान, विज्ञान, गुण और अध्यात्म जैसे तत्व भारत की देन हैं, और अब समय आ गया है कि भारत को फिर से विश्वगुरु के रूप में प्रतिष्ठित किया जाए।
समाज और देश के प्रति कर्तव्यों का पालन
डॉ. भागवत ने युवाओं से आग्रह किया कि वे सेवा, समर्पण और राष्ट्र निर्माण के मार्ग पर अग्रसर हों। उन्होंने यह भी कहा कि भारतीय संस्कृति को जीवन में उतारने वाले संत समाज के सच्चे पथप्रदर्शक होते हैं। उनका संदेश था कि समाज के भेदभाव को समाप्त करते हुए हमें सभी को साथ लेकर चलने की आवश्यकता है, और समाज में एकता और प्रेम का संदेश फैलाना होगा।
कबीरधाम आश्रम का महत्व और आयोजन
कबीरधाम आश्रम में हुए इस आयोजन ने भारतीय संस्कृति और समाज की दिशा में एक प्रबल कदम उठाया है। यहां हुए सत्संग से भारतीय आत्मा को और अधिक मजबूती मिली और समाज में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का एक नया रास्ता खोला गया। यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि एक सामाजिक और सांस्कृतिक जागरण की ओर बढ़ता हुआ कदम था।
विशाल जनसैलाब और सुरक्षा व्यवस्था
इस विशेष आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालु, संत, ग्रामीणजन और स्वयंसेवक उपस्थित थे। आयोजन स्थल पर सुरक्षा व्यवस्था भी पूरी तरह चाक-चौबंद रही, जिससे सभी को बिना किसी समस्या के कार्यक्रम का लाभ मिला।