रेट्रो रिव्यू : “बरखा” — तड़पाओगे तड़पा लो, पर इस क्लासिक को मिस मत करो

साक्षी चतुर्वेदी
साक्षी चतुर्वेदी

1959 में जब जगदीप को हीरो बनाया गया, तो सिनेमा प्रेमियों ने भी हैरानी से छाता खोल लिया — “ये वही कॉमिक जगदीप हैं?” लेकिन बरखा में उन्होंने पारंपरिक हीरो के सारे गुण निभाए। सीरियस भी लगे और रोमांटिक भी। और वो सैलाब वाला सीन… तड़पाओगे तड़पा लो बस वही मूड था!

नंदा: बारिश में भी भीगी नहीं, बस नज़रों से बहा ले गईं

नंदा का रोल पार्वती के रूप में बेहद ग्रेसफुल है। सादगी, समर्पण और संस्कार के ऐसे पैकेज के साथ उन्होंने साबित किया कि बरखा सिर्फ मौसम का नाम नहीं, बल्कि फ़ीलिंग है।

बुलफाइट – जब AVM ने बॉलीवुड को स्पेनिश सस्पेंस दे डाला

इस फिल्म में एक बुलफाइट है, जो तमिल ओरिजिनल में नहीं थी। यानि AVM स्टाइल में कुछ नया, थोड़ा हटके! और तब तो VFX नहीं था जनाब! असली बैल और असली पसीना। यह वही दौर था जब एक्शन मतलब हाथापाई नहीं, जिगर का खेल होता था।

संगीत: “तड़पाओगे तड़पा लो” बना इमोशन का एंथम

चित्रगुप्त का संगीत और राजेंद्र कृष्ण के बोल हर गीत को रेडियो हिट बना गए।

  • “बरखा बहार आई” – लता की आवाज़ में जैसे खुद बारिश उतर आई।

  • “एक रात में दो दो चाँद खिले” – लता और मुकेश की जोड़ी में चांदनी भी शरमा जाए।

  • “तड़पाओगे तड़पा लो” – मोहब्बत के हक में दी गई सबसे खूबसूरत दलील।

बजट vs बॉक्स ऑफिस: 1959 की ‘Blockbuster बरखा’

₹5 लाख के बजट में बनी इस फिल्म ने ₹35 लाख की कमाई की – यानी उस दौर में भी ROI ने अपना रोल निभाया। सरवनन के मुताबिक ये AVM की सबसे कामयाब फिल्मों में रही।

थोड़ा श्रद्धांजलि

अब सोचिए, जहां आज फिल्मों के लिए “Pan India release” का झंझट है, वहां 1959 में एक तमिल फिल्म की हिंदी रीमेक बरखा पूरे देश में बरस पड़ी।
और कोई Insta reel नहीं, फिर भी गाने आज भी रीमिक्स होते हैं — तड़पाओगे तड़पा लो, सुनने वालों की नब्ज़ को छू लो!

रेट्रो रिव्यू : ‘बिन फेरे हम तेरे’ – शादी के बिना भी पूरी ज़िंदगी का साथ

“बरखा” सिर्फ एक फिल्म नहीं, वो एहसास है जो रिमझिम बारिश के साथ दिल में उतरती है। Jagdeep और Nanda की जोड़ी, चित्रगुप्त का संगीत और AVM का प्रोडक्शन – मिलकर एक ऐसा सिनेमाई मानसून बनाते हैं जो हर पीढ़ी के दिल को भिगोता है।

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