
बरेली में 26 सितंबर को जुमे की नमाज़ के बाद, मुस्लिम समुदाय द्वारा शांति से ज्ञापन देने की कोशिश हिंसक बवाल में बदल गई। लाठीचार्ज, गिरफ्तारी, और कथित बुलडोजर एक्शन ने आग में घी डाल दिया। अब विपक्ष सरकार से सवाल पूछ रहा है – लेकिन सरकार ने चुप्पी के साथ-साथ ‘नो एंट्री’ का बोर्ड भी लगा दिया है।
राजनीति की ‘एंट्री’ बैन – सपा प्रतिनिधिमंडल को रोका गया
सपा मुखिया अखिलेश यादव ने 14 नेताओं का हाई-प्रोफाइल प्रतिनिधिमंडल बरेली भेजने का ऐलान किया, जिनमें युवा सांसद इकरा हसन, जियाउर्रहमान बर्क और पूर्व मंत्री भगवत शरण जैसे बड़े नाम शामिल हैं। लेकिन प्रशासन ने साफ कर दिया – “राजनीति की एंट्री नहीं है, भाई!”
पुलिस सूत्रों के अनुसार, इन नेताओं को लखनऊ से निकलने से पहले ही नोटिस देकर रोक लिया गया है। हाउस अरेस्ट का ‘बोल्ड मूव’ प्रशासन का अगला पत्ता है।
सपा का मिशन: सच्चाई का पता लगाना या पॉलिटिकल ड्रामा?
सपा की तरफ से बयान आया कि वे सिर्फ “पीड़ितों से मिलने और हकीकत जानने” जा रहे हैं। लेकिन प्रशासन को डर है कि इससे कानून व्यवस्था और भड़क सकती है।
प्रश्न उठता है – ये ‘जनसंपर्क’ है या ‘जनउपद्रव’?
प्रशासन हाई अलर्ट पर: ‘बरेली में कोई VIP नहीं चलेगा!’
बरेली में जगह-जगह भारी पुलिस बल तैनात है। DIG और कमिश्नर को सख्त निर्देश मिले हैं – किसी भी नेता को जिले में घुसने न दिया जाए।
जिला प्रशासन ने फिलहाल सियासी ‘नॉन-वेज’ पर पाबंदी लगाते हुए सिर्फ ‘शांति का खिचड़ी भोज’ रखने का आह्वान किया है।
FIR का स्कोरकार्ड – नामजद 126, अज्ञात 3225, गिरफ्तार 89
पुलिस की कार्रवाई भी जोरों पर है।
मौलाना तौकीर रजा समेत 89 लोग जेल में

350+ मोबाइल नंबर सर्विलांस पर
धार्मिक जुलूस भी रद्द
दरगाह आला हजरत के सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन मियां ने भी अपील की है – “फातेहा घर पर ही पढ़िए, सड़कों पर नहीं!”
राजनीति vs प्रशासन: कौन जीतेगा बरेली का माइंडगेम?
सपा जहां ‘सत्य की खोज’ का राग अलाप रही है, वहीं प्रशासन ‘शांति बनाए रखने’ के नाम पर सख्ती दिखा रहा है। असल सवाल ये है – क्या ये प्रशासनिक सूझबूझ है या विपक्षी आवाज़ को दबाने की कवायद?
सियासत गरम है, लेकिन जनता को चाहिए ठंडा माहौल!
बरेली फिलहाल एक बार फिर सियासत और संप्रदाय के बीच झूल रहा है। हर पक्ष अपनी स्क्रिप्ट पर चल रहा है – लेकिन असली हकदार जनता है, जो चाहती है शांति, सुरक्षा और सच्चाई।