
समाजवादी पार्टी के फायरब्रांड नेता आज़म ख़ान को आखिरकार दो साल बाद सीतापुर जेल से जमानत पर रिहाई मिल गई है। उनकी रिहाई पर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की खुशी देखते ही बनती थी — उन्होंने कोर्ट को धन्यवाद कहा और साथ ही सियासी स्टाइल में “अगर हमारी सरकार बनी, तो सारे केस होंगे ‘Delete’!” वाला ऐलान भी कर डाला।
“सब झूठे मुक़दमे हैं!” – अखिलेश का ‘Delete All Cases’ Manifesto
अखिलेश यादव ने साफ कहा- “मुख्यमंत्री ने अपने मुक़दमे वापस लिए, डिप्टी सीएम ने भी लिए, तो आज़म साहब पर लगे मुक़दमे भी फौरन हटने चाहिए।”
“S.P. सरकार आने दो, FIR खुद हार मान लेगी!”
लगता है अगली समाजवादी सरकार Google Drive की तरह मुक़दमे सिलेक्ट करके ‘Shift + Delete’ कर देगी।
राजनीति या सीरीज़? – “Scam, Scam Everywhere!”
जहां BJP कहती है, “कानून का राज है,” वहीं S.P. का कहना है, “राज आते ही कानून को थोड़ा आराम देंगे।”
आज़म ख़ान पर दर्ज केसों की गिनती इतनी है कि चार्जशीट पढ़ते-पढ़ते वकीलों को भी Tea Break की ज़रूरत पड़ती है।

ज़मानत हुई , जेल के गेट खुले, अगला चुनावी भाषण तय – “मैं आज़म हूँ, निर्दोष हूँ!”
Courtroom से Campaign Trail तक – क्या आज़म बनेंगे सपा का ‘मोहरा’?
2022 के बाद आज़म ख़ान का सियासी कद कमजोर पड़ा था। लेकिन अब, जैसे ही रिहाई हुई, अखिलेश यादव का Old Monk (पढ़ें: Old Political Monk) फिर एक्टिव मोड में आ गया। अगले चुनाव से पहले आज़म का मैदान में आना, सपा के लिए बड़ा कार्ड साबित हो सकता है — या फिर सिर्फ एक “इमोशनल Re-Entry”?
राजनीति में वापसी या जेल का ब्रेक?
आज़म ख़ान की रिहाई को अखिलेश यादव ने सिर्फ कोर्ट की जीत नहीं, बल्कि “2027 की तैयारी” मान लिया है। सवाल ये है कि जनता भी इस ‘कानूनी पवित्रता’ को स्वीकार करेगी या नहीं? और कहीं ऐसा न हो कि अगली बार मुक़दमे हटें नहीं, और आरोप फिर से अपडेट हो जाएं।