
उत्तर प्रदेश में दीयों की रोशनी जितनी दूर तक जाती है, उससे कहीं ज़्यादा तेज़ इस बार अखिलेश यादव का बयान चमका। समाजवादी पार्टी अध्यक्ष ने दीपोत्सव में दीयों पर सरकारी खर्च को “समझ से परे” बताया — और यहीं से शुरू हुआ “दीया बम ब्लास्ट”।
“दीया, बाती, तेल और रोशनी… सब लोकल होना चाहिए!”
शनिवार को अखिलेश ने कहा था — “हर साल दीयों पर इतना पैसा क्यों खर्च हो रहा है?”
और रविवार को सफाई दी — “हम चाहते हैं कि दीया भी यूपी का हो, बाती भी, तेल भी और रोशनी भी!”
उन्होंने BJP सरकार पर आरोप लगाया कि ये दीये दूर-दराज के तटीय राज्यों से खरीदे जा रहे हैं, जिससे स्थानीय कुम्हारों यानी प्रजापति समाज का आर्थिक हक मारा जा रहा है।
2027 की दिवाली: PDA सरकार का ‘दीया मैनिफेस्टो’
अखिलेश यादव ने वादा किया — “2027 की दिवाली पर PDA सरकार करोड़ों रुपये के दीये प्रजापति समाज से खरीदेगी ताकि उनके घरों में कई महीनों तक रोशनी रहे।”
अब यह वादा कितनी रोशनी फैलाएगा और कितनी वोट, ये तो 2027 ही बताएगा!
“क्रिसमस से सीखो” – और फिर!
अपने पुराने बयान में अखिलेश बोले थे —“दुनिया में क्रिसमस के दौरान महीनों तक लाइटिंग रहती है… हमें भी वैसा करना चाहिए।”

विश्व हिंदू परिषद का जवाबी फुलझड़ी अटैक
VHP के प्रवक्ता विनोद बंसल बोले — “दीयों से उनका दिल जल गया! अब ये हिंदुओं को नसीहत दे रहे हैं, क्रिसमस मनाओ!”
उन्होंने आरोप लगाया कि दिवाली की तुलना क्रिसमस से करना हिंदू परंपराओं का अपमान है, और अखिलेश अब “धर्मांतरण के मसीहा” बनते जा रहे हैं।
सियासी दीयों में कौन जलेगा?
राजनीति में त्यौहार अब सिर्फ जश्न नहीं, एजेंडा भी बनते जा रहे हैं। दीयों की गर्मी अब सिर्फ दीवारों तक नहीं, राजनीति की दीवारें भी गरमा रही हैं।
तो अगली बार जब दीया जलाएं, ये ज़रूर सोचिए कि वो कहां से आया है — तटीय राज्य से, या लोकल कुम्हार से?
अखिलेश यादव ने दिवाली पर कहा—“दियों पर पैसा क्यों खर्च?” सरकार पर तंज