
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीजेपी की डबल इंजन सरकार पर तंज कसते हुए कहा—”अब यह इंजन ईंधन नहीं ढूंढ पा रहा है, रास्ता क्या खाक दिखाएगा?” उन्होंने साफ किया कि यह सरकार अब बस धुआं छोड़ रही है, विकास नहीं।
ना शिया, ना सुन्नी, हिंदू या मुसलमान—हुसैन के दीवाने बस इंसान होते हैं
व्यापारी परेशान, सरकार आराम फरमाए
अखिलेश बोले—“बीजेपी को ‘व्यापारियों का मित्र’ कहा गया था, लेकिन अब व्यापारी कह रहे हैं—‘ऐसा मित्र किसी दुश्मन को भी न मिले’।” GST, नोटबंदी, नोटिसबाजी—सब कुछ व्यापारियों की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
जीएसटी: टैक्स रिफॉर्म या टैक्स फॉर्म भरने की सजा?
उन्होंने GST पर चुटकी लेते हुए कहा, “GST ऐसा सिस्टम है जहां व्यापारी से ज्यादा CA खुश रहता है, और टैक्स भरने वाला बस रोता है।” उन्होंने सवाल उठाया कि आखिर यह टैक्स सुधार है या व्यापारियों की परीक्षा?
अर्थव्यवस्था का ‘आपातकाल’, और वित्त मंत्रालय बना ‘शांत मंत्रालय’
अखिलेश ने दावा किया कि पिछले साल में 35,000 MSMEs बंद हो गए। लेकिन सरकार कहती है—”सब अच्छा है!” उन्होंने पूछा, “अगर यही अच्छा है तो बुरा क्या होगा? RBI को कम से कम रुमाल भेज देना चाहिए।”
बिचौलियों का ‘अच्छे दिन’, असली व्यापारियों की ‘कर्फ्यू पास’
सपा प्रमुख बोले—“अब सरकार माल तैयार करने वालों से ज्यादा, बिचौलियों को लाभ पहुंचा रही है। ऐसे में भारत नहीं, केवल कुछ ‘भारतवाले’ आगे बढ़ रहे हैं।” उन्होंने इसे बीजेपी की ‘चंदा नीति’ का परिणाम बताया।
टैक्स नोटिस: जब सरकार कहे “प्रेम से भरें – टैक्स या जेल”
“टैक्स का सिस्टम अब सरकारी लव लेटर बन चुका है,” अखिलेश ने कहा। “जिसे देख व्यापारी सोचता है – शादी करनी थी, ये ब्याज-विवाह क्यों मिल गया?” उन्होंने आरोप लगाया कि खास तौर पर समाजवादी विचारधारा वालों को निशाना बनाया जा रहा है।
माफिया लिस्ट: 9 साल, लिस्ट अभी भी ‘लोडिंग…’
सबसे दिलचस्प तंज उस समय आया जब अखिलेश ने कहा, “बीजेपी ने माफिया हटाने का वादा किया था, अब लगता है माफिया डेटा सर्वर पर है और इंटरनेट स्लो।” उन्होंने पत्रकारों से हँसते हुए कहा—“आप लिस्ट छापिए, फिर देखिए कि कहीं आपका एनकाउंटर न हो जाए!”
व्यापारियों के सपने चौराहे पर धूप सेंक रहे
अखिलेश यादव ने इस सबका निचोड़ दिया—“देश की व्यापारिक रीढ़ टूट रही है, और सरकार सिर्फ ‘नमस्ते ट्रंप’ और ‘सेल्फी विद स्कीम’ में व्यस्त है।” उन्होंने बीजेपी से सवाल किया: “क्या विकास अब सिर्फ जुमलेबाजी और डायलॉगबाज़ी में ही मिलेगा?”
“व्यापार की गाड़ी अब धकेलनी पड़ेगी, वो भी टैक्स की चप्पलों में”
इस पूरे सटायर से यह साफ है कि अखिलेश यादव का यह हमला बीजेपी की नीतियों के खिलाफ एक तीखी हँसी के तीरों से भरी तिजोरी थी। उन्होंने न केवल व्यापारियों की आवाज़ उठाई, बल्कि इसे एक राजनीतिक रंगमंच बना दिया—जहां सरकार की हर नीति पर एक कॉमिक पंच था।