
उत्तर प्रदेश आबकारी विभाग के हालिया तबादलों में जो खुलासे हुए हैं, उन्होंने ऑनलाइन और मेरिट आधारित व्यवस्था की हवा निकाल दी है। विभाग ने तबादलों के लिए तो पोर्टल और मेरिट प्वाइंट सिस्टम बना दिया, लेकिन सिस्टम चला नहीं — और जो चला, उसमें भी ‘जुगाड़’ सबसे भारी पड़ गया।
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मेरिट पीछे, मेहरबानी आगे!
जिन इंस्पेक्टरों ने ज़िला या मंडल में तय समय पूरा कर लिया था, उनका ट्रांसफर नहीं हुआ। वहीं, जिनका अभी ट्रांसफर होना नहीं चाहिए था, वो बैग पैक कर चुके हैं। यही नहीं, कई अफसर पोर्टल तक नहीं खोल पाए, फिर भी तबादले हो गए।
क्या इसे ‘स्मार्ट गवर्नेंस’ कहा जाए या ‘सिलेक्टिव सॉफ्टवेयर अपडेट’?
स्पाउस मेरिट या सिर्फ स्पाउस कनेक्शन?
स्पाउस मेरिट और स्पाउस ग्राउंड के नाम पर हुए तबादलों ने भी सवाल खड़े कर दिए हैं। एक ही ज़िले में कई सालों से जमे कुछ अधिकारी वहीं बने रहे, तो कुछ जोड़ीदार अचानक दूर-दराज़ भेज दिए गए।
आबकारी विभाग में “समानता” की परिभाषा शायद अलग-अलग पोर्टल पर चेक की जाती है।
सूची दबा, खबर छुपा — बस ट्रांसफर करवा!
सबसे दिलचस्प बात यह रही कि विभाग, जो हर उपलब्धि की प्रेस रिलीज़ और बाइट्स देने में आगे रहता है, उसने तबादलों की सूची को लेकर चुप्पी साध ली। यानी — “खबर दबाओ, तबादला चलाओ!”
सूची न तो सार्वजनिक की गई, न ही पोर्टल पर ठीक से दिखी। पारदर्शिता की उम्मीद रखने वालों के लिए ये एक तगड़ा झटका है।
आबकारी आयुक्त की मेरिट प्रणाली पर सवाल
हालांकि आबकारी आयुक्त ने तबादलों के लिए मेरिट प्वाइंट व्यवस्था का आदेश ज़ारी किया था, लेकिन ज़मीन पर इसकी प्रभावशीलता सवालों के घेरे में है। क्या यह व्यवस्था सिर्फ कागज़ों पर ही पारदर्शी थी?
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