असम में बाढ़ का तांडव: सरकार क्या पकोड़े तलने में व्यस्त है

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

असम में पिछले कई दिनों से हो रही मूसलधार बारिश के कारण बाढ़ ने पूरी स्थिति को अस्त-व्यस्त कर दिया है। असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) के अनुसार, इस समय राज्य के 21 जिलों में 1506 गांव बाढ़ के पानी में डूब चुके हैं। बाढ़ के पानी का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है, जिससे जान-माल का नुकसान बढ़ता जा रहा है।

पिछले 5 दिनों में बाढ़ और भूस्खलन से अब तक 18 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। यह आंकड़ा हर रोज़ बढ़ता जा रहा है, और सवाल उठते हैं कि क्या सरकार इस आपदा से निपटने के लिए तैयार है?

कहानी महज़ बाढ़ की नहीं, व्यवस्था की भी है

रिपोर्टों के मुताबिक, 6 लाख 33 हजार से ज्यादा लोग प्रभावित हुए हैं, और लगभग 40 हजार विस्थापितों को राहत शिविरों में शरण दी गई है। लेकिन सवाल यह उठता है, क्या इन राहत शिविरों में पर्याप्त सुविधाएं दी जा रही हैं? क्या बाढ़ पीड़ितों की स्थिति पर सरकार सच में ध्यान दे रही है या फिर सिर्फ़ कागज़ों में राहत पहुंचाई जा रही है?

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श्रीभूमि ज़िला (जो पहले करीमगंज था) में 94,000 से ज्यादा लोग बाढ़ के कारण परेशान हो चुके हैं, और ऐसे हालात में यह स्पष्ट है कि प्रभावित क्षेत्रों में राहत कार्यों की गति काफी धीमी रही है।

सरकार की चेतावनी – लेकिन क्या वह तैयारी में है?

भारत मौसम विज्ञान विभाग ने असम और आसपास के राज्यों जैसे मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, और मिज़ोरम में 5 जून तक भारी बारिश की चेतावनी जारी की है। इसका मतलब है कि बाढ़ और भूस्खलन के खतरे और बढ़ने वाले हैं, और हमें यह सवाल करना चाहिए: क्या सरकार ने सच में सही योजना बनाई है, या फिर सब कुछ सिर्फ़ “वक्त पर किए जाने वाले काम” तक सीमित है?

असम और मणिपुर की जद्दोजहद – सरकारी तैयारी की नाकामी?

मणिपुर में भी 1 लाख 60 हजार से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, और इसका असर पूरे उत्तर-पूर्व में दिखाई दे रहा है। सवाल यह भी है कि क्या केंद्र और राज्य सरकारों के बीच बेहतर समन्वय है, या फिर इस आपदा से निपटने में जो कई वर्षों से चली आ रही राजनीतिक खींचतान और लापरवाही बनी हुई है, वही सामने आ रही है?

क्या बाढ़ के बाद राहत सिर्फ़ मीडिया तक सीमित रह जाती है?

यहां सवाल यह है कि हम प्रत्येक बार बाढ़ के समय राहत कार्यों की कवरेज देखते हैं, लेकिन असली मदद कहीं पीछे छिप जाती है। क्या राहत कार्य वाकई उन लोगों तक पहुँच रहे हैं, जो सब कुछ खो चुके हैं? क्या यह सिर्फ़ दिखावे का खेल है, या फिर हमारे सिस्टम में कुछ ऐसा हो रहा है जो इसे सही तरीके से लागू होने से रोक रहा है?

क्या सिर्फ़ आंकड़ों से बाढ़ की सच्चाई छिपा पाई जाएगी?

वर्तमान स्थिति को देखते हुए यह सवाल फिर से उठता है कि क्या हमारी सरकार सिर्फ़ आंकड़ों के पीछे भाग रही है, या वाकई में उन लाखों लोगों को तुरंत मदद देने की तैयारी कर रही है जिन्हें अब ज़िंदगी और मौत के बीच की लकीर को पार करना है?

असम की बाढ़: एक वास्तविकता, जो हर साल दोहराई जाती है

यह असम की बाढ़ कोई नई बात नहीं है, बल्कि एक हर साल दोहराया जाने वाला दुःस्वप्न है। सरकार की नाकामी और राहत कार्यों में देरी ने बाढ़ प्रभावितों की हालत और बिगाड़ दी है। अगर इस बार भी हम यह सब देखकर बिना कोई ठोस कार्रवाई किए चुप रहते हैं, तो हमें आने वाले सालों में भी यही खामियां देखने को मिलेंगी।

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