असम में ‘जल ही जीवन है’ अब ‘जल ही जीवन-भर की मुसीबत’

Lee Chang (North East Expert)
Lee Chang (North East Expert)

पूर्वोत्तर भारत का प्रवेश द्वार, असम — जहां बारिश अब केवल मौसम का हिस्सा नहीं रही, बल्कि एक मासिक आपदा कार्यक्रम बन चुकी है। मई के अंत से लगातार हो रही मूसलाधार बारिश ने राज्य के 12 जिलों को पानी-पानी कर दिया है।

“बारिश इतनी हुई कि मेघ भी अब कह रहे हैं – बस करो भैया, हम भी थक गए!”

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175 गांव जलमग्न – सरकार बोली: स्थिति नियंत्रण में है (पानी के अंदर से)

31 मई को असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (ASDMA) ने बताया कि कुल 175 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। लखीमपुर सबसे ज़्यादा चोट खाया ज़िला बन गया है, जहां लोगों को अब नाव से नहीं, सोशल मीडिया से पता चलता है कि उनका घर अब ‘वाटर विला’ बन चुका है।

राहत शिविर या रेन रिट्रीट? – टेंट में जीवन का नया अध्याय

लखीमपुर में प्रशासन ने दस से अधिक राहत शिविर खोले हैं। स्थानीय लोग अपना सब कुछ छोड़कर ऊंचे इलाकों में टेंट लगाकर रह रहे हैं।

“ये टेंट में रहना कुछ वैसा ही है जैसे आप बिना टिकट किसी ‘सर्वाइवल शो’ में पहुंच गए हों।”

सड़क-रेल सेवा ठप – अब यात्रा वही करेगा जिसे ‘एडवेंचर’ चाहिए

गुवाहाटी सहित कई हिस्सों में सड़क और रेल परिवहन व्यवस्था ठप हो चुकी है। जनता के लिए हर सड़क अब ‘जल सड़क’ और हर प्लेटफॉर्म ‘पूल साइट’ हो चुका है।
अगर आप ट्रैवल इंफ्लुएंसर हैं, तो आपके लिए ये जगह इंस्टा-परफेक्ट है – बशर्ते फोन जलप्रलय से बच जाए।

हम तैयार हैं (कागज़ पर)

ASDMA के अधिकारी कह रहे हैं कि राहत कार्य तेज़ी से चल रहा है। पानी में गिरे बिजली के खंभे और बहते खेतों के बीच उनकी बातों का असर किसी व्हाट्सऐप फॉरवर्ड जैसा ही लग रहा है — शेयर ज़रूर होता है, पर असर नहीं दिखता।

असम में बाढ़ अब कोई नई बात नहीं रही, लेकिन प्रशासन की ‘पुरानी रणनीतियां’ हर साल नई बर्बादी की गारंटी देती हैं।
बारिश आती है, बाढ़ आती है, कैमरा आता है, नेता आता है, फिर चुनाव आता है – लेकिन समाधान नहीं आता।

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