
पहलगाम हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तेज़ हो गया है। इसी बीच भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने पूरे देश में 7 मई को सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल कराने का निर्देश जारी किया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (यूबीटी) के नेता और राज्यसभा सांसद संजय राउत ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए हैं।
7 मई को उत्तर प्रदेश में मॉक ड्रिल, डीजीपी बोले- सभी जिलों में अभ्यास होगा
संजय राउत बोले – “युद्ध के बाद की स्थिति कहीं ज्यादा गंभीर”
“अगर सरकार मॉक ड्रिल करना चाहती है तो ठीक है। लेकिन मॉक ड्रिल क्या होता है? सायरन बजते हैं, ब्लैकआउट होता है — ये हमने 1971 में देखा है।”
उन्होंने कहा कि उस दौर में कोई संचार माध्यम नहीं था, लेकिन आज के ज़माने में सरकार जनता को जागरूक करने की ज़िम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकती।
राजनीतिक सहयोग की मांग: “सबको साथ लिया जाए”
संजय राउत ने आगे कहा:
“युद्ध की बात हो रही है, लेकिन युद्ध के बाद जो परिस्थिति बनती है वह और भी कठिन होती है। ऐसे में सरकार को विपक्ष और सभी दलों को साथ लेकर रणनीति बनानी चाहिए।”
उन्होंने कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हवाला देते हुए कहा कि:
“राहुल गांधी पहले ही विशेष सत्र बुलाने की मांग कर चुके हैं। देश संकट में है, तो हम विपक्ष में होकर भी साथ खड़े हैं।”
मॉक ड्रिल क्यों?
गृह मंत्रालय ने देशभर में 7 मई को मॉक ड्रिल की घोषणा की है, जिसमें संभावित युद्ध या आपदा जैसी स्थिति में नागरिक और प्रशासनिक प्रतिक्रिया की जांच की जाएगी। ड्रिल में सायरन, ब्लैकआउट, यातायात रोकने जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं।
राजनीतिक और नागरिक नजरिया:
पहलू | विवरण |
---|---|
सरकारी मंशा | आपदा प्रबंधन और नागरिक तैयारी |
विपक्ष की मांग | पारदर्शिता और राजनीतिक समन्वय |
आम जनता की भूमिका | जागरूकता और सहयोग |
संजय राउत की प्रतिक्रिया केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह एक लोकतांत्रिक चेतावनी है कि युद्ध की स्थिति में केवल सैन्य तैयारी नहीं, बल्कि सामाजिक और राजनीतिक समावेशिता भी आवश्यक है। मॉक ड्रिल जैसे उपाय जहां प्रशासनिक तत्परता बढ़ाते हैं, वहीं जन प्रतिनिधियों का सहयोग और संवाद भी उतना ही अहम है।
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