
महिला जननांग विकृति (FGM) की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार गंभीरता से सुनवाई शुरू कर दी है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस आर महादेवन की बेंच ने हालिया जनहित याचिका पर नोटिस जारी किया है, जिसमें FGM को “अमानवीय, भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक” बताया गया है।
याचिका का सीधा आरोप है — यह प्रथा नाबालिग लड़कियों के मौलिक अधिकारों का सबसे बड़ा और सबसे चुप्पा उल्लंघन है।
क्या है FGM या ‘खफद’? — “सात साल की बच्ची और सदियों पुरानी सोच”
याचिका के अनुसार, खफद एक प्रक्रिया है जिसमें लगभग 7 साल की लड़कियों के क्लाइटोरल हुड का एक हिस्सा काटा जाता है। माना जाता है कि इससे यौन इच्छा नियंत्रित होती है और “तहारत” यानी पवित्रता प्राप्त होती है।
सदमा देने वाली बात- कुरान में इस प्रथा का कोई स्पष्ट समर्थन नहीं मिलता, लेकिन कुछ समुदायों में यह 500+ वर्षों से चली आ रही परंपरा है।
WHO, UNICEF और कई इस्लामी विद्वान इसे खुले शब्दों में गलत बताते हैं।
दाइम अल-इस्लाम और परंपरा का तर्क — “धर्म vs मानवाधिकार”
याचिका में कहा गया है कि दाऊदी बोहरा समुदाय द्वारा अनुसरण किए जाने वाले धार्मिक ग्रंथ दाइम अल-इस्लाम में FGM का ज़िक्र है। हालांकि, यह अनिवार्य धार्मिक कर्तव्य नहीं है।
याचिकाकर्ता की दलील-“सती प्रथा की तरह, यह भी एक कुप्रथा है और इसे समाप्त होना ही चाहिए।”
संविधान के कौन-कौन से अधिकारों का उल्लंघन?
FGM को इन अधिकारों का हनन बताया गया है:
अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता
शारीरिक अखंडता
निजता का अधिकार
सहमति का अधिकार
अनुच्छेद 14 – समानता
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लड़कियों के साथ भेदभाव
अनुच्छेद 15 – लिंग आधारित भेदभाव निषेध
याचिका में KS Puttaswamy Judgment का भी हवाला दिया गया है — शरीर पर स्वामित्व किसी और का नहीं हो सकता।
धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल — अनुच्छेद 25 vs अधिकारों का टकराव
अदालत के सामने बड़ा प्रश्न:
क्या धार्मिक स्वतंत्रता उन प्रथाओं तक जा सकती है जो बच्चों को नुकसान पहुंचाती हैं?
याचिकाकर्ता का स्पष्ट जवाब—
“नहीं। हानिकारक रीति-रिवाज कभी भी धार्मिक स्वतंत्रता की ढाल नहीं बन सकते।”

Expert Opinion — “यह प्रथा नहीं, कुप्रथा है”
एडवोकेट अनिल कुमार सिंह श्रीनेत का कहना है कि:
- भारत में FGM पर कोई अलग कानून नहीं है।
- फिलहाल यह BNS की धारा 113 व 118 और POCSO के तहत दंडनीय है।
- कोई dedicated law नहीं होने से यह प्रथा बिना रोक-टोक जारी है।
उनका अनुमान —सुप्रीम कोर्ट FGM पर रोक लगा सकता है।
WHO और ग्लोबल स्टैंड — दुनिया कह रही है “STOP FGM”
WHO ने FGM को:
गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन
स्वास्थ्य के लिए खतरा
महिलाओं के अधिकारों का दमन
बताया है।
UN भी इसके उन्मूलन की मांग करता रहा है।
फिर भी रिपोर्टों के अनुसार, दाऊदी बोहरा समुदाय की लगभग 75% महिलाएं अपनी बेटियों को भी खफद करवाती हैं।
भारत ही नहीं—30 देशों में है FGM का चलन
UNICEF के अनुसार अगले दशक में FGM के 20 लाख नए मामले सामने आ सकते हैं।
भारत में यह प्रथा मुख्यतः:
- दाऊदी बोहरा
- सुलेमानी बोहरा
- अल्वी बोहरा
- कुछ सुन्नी उप-संप्रदाय
में पाई जाती है।
चार अहम सवाल जिन पर फैसला तय होगा
- क्या यह बच्चियों की निजता और सहमति के अधिकार का उल्लंघन है?
- क्या यह जीवन और शारीरिक स्वायत्तता के अधिकार (Art. 21) का हनन है?
- क्या यह लड़कियों के साथ भेदभाव है (Art. 14 और 15)?
- क्या यह धार्मिक स्वतंत्रता (Art. 25-26) के तहत संरक्षित हो सकती है?
Supreme Court ने तलाक-ए-हसन पर भी रुख दिखाया था
पिछले महीने ही सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया था कि घोर भेदभावपूर्ण धार्मिक प्रथाओं पर रोक लगाई जा सकती है।
यानी स्पष्ट है —अगर प्रथा अधिकारों का उल्लंघन करती है, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा।
“CJI क्यों हटाया? EC को Immunity क्यों? Rahul का Triple Attack!”
