
लखनऊ के लक्ष्मण झूला पार्क के पास गोमती रिवरफ्रंट पर सोमवार को एक बड़ा कार्यक्रम हुआ। मौका था—प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत 2 लाख मछलियां गोमती में छोड़ने का। मंत्री संजय निषाद खुद मौजूद थे, बड़े-बड़े अधिकारी साथ में… और कैमरे तो थे ही। लेकिन जैसे ही मछलियां पानी में गईं— “मोटिलिटी” की जगह मॉर्टैलिटी देखने को मिल गई!
असंख्य मछलियां उतराते ही मरने लगीं। “Fish Release turned Fish Relief (to Yamraj)”
मंत्री की सफाई—‘अब मोटिलिटी 10% रह गई, पहले 30% थी’
मंत्री संजय निषाद ने कहा— “नदियों में मछलियों की गतिशीलता अब सिर्फ 10% है।” मतलब, हर 100 छोड़ी गई मछलियों में 90 तो जाने ही हैं। सवाल यह कि फिर 2 लाख डालने का मतलब… फोटो-ऑप या इकोलॉजी?
मछुआरों का रिप्लाई—‘साहब, नदी नहीं, पैकेट ही पहले मार देता है!’
स्थानीय मछुआरे बोले— पैकेट में मछलियां पहले से ही खराब हालत में रहती हैं लगभग 10% पैकेट में ही मर जाती हैं नदी में छोड़े जाने के बाद 50% को बड़ी मछलियां, सांप और पक्षी खा जाते हैं बचती मुश्किल से आधी।
“नदी में रिलीज़ कम, नेचर में डिलीवरी ज़्यादा।”

गोमती की हालत—पानी इतना साफ कि मछलियां तुरंत ‘ऊपरवाले’ से मिलने चल पड़ें!
मौके पर मौजूद मछुआरों ने कहा— “पानी इतना गंदा है कि आधी मछलियां तो ऐसे ही मर जाएँगी।”
गोमती का रंग वैसे भी ‘आइवरी व्हाइट विद ग्रीन-टिंट’ नहीं, बल्कि ‘पॉल्यूशन ग्रे विद स्मॉग ब्लैक’ दिख रहा है।
सरकार की बात—बीमा भी मिलेगा, योजनाएं भी
मंत्री ने योजनाओं का बखान भी किया— मछली पालन करने वालों को 5 लाख तक का इंश्योरेंस कवर, मत्स्य संपदा और बीमा योजनाओं पर जोर लेकिन Ground Reality ने बता दिया कि मछलियों का इंश्योरेंस भले मिले, पर नदी में उनका ‘जीवन बीमा’ अभी भी Pending है।
“93 रन… इंडिया की बल्लेबाजी इतनी जल्दी खत्म हुई जैसे ओटीटी का ट्रायल प्लान
