ऊदा देवी: पासी समाज का गर्व और यूपी में BJP की नई पॉलिटिकल गेम प्लान?

आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)
आशीष शर्मा (ऋषि भारद्वाज)

ऊदा देवी का महत्व पासी समाज के लिए क्या है—ये किसी को बताने की जरूरत नहीं। वह सिर्फ एक पासी आइकन नहीं, बल्कि भारत के हर नागरिक के लिए वीरांगना, बलिदान, और स्वाभिमान की जीवित प्रेरणा हैं।
1857 की क्रांति में उनका शौर्य ऐसा अध्याय है जिसे सदियां याद रखेंगी।

लेकिन… 2025 का भारत इतिहास को सिर्फ पढ़ नहीं रहा—राजनीति में भी पढ़वा और दिखवा रहा है।

प्रतिमा का अनावरण: मेसेज जनता को था, लेकिन इशारा सीधा पासी वोट बैंक की तरफ

लखनऊ के गोमतीनगर विस्तार में ऊदा देवी की भव्य प्रतिमा का अनावरण किया गया।
मंच पर दो बड़े चेहरे— सीएम योगी आदित्यनाथ, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, जो दिल्ली से दौड़ते-दौड़ते आए (राजनीति में दौड़ना जरूरी है भाई).

दोनों ने भाषण भी वही दिया जो देना था— “पासी समाज का सम्मान हम करते हैं… और कोई नहीं!” (किसी भी पार्टी का टॉप-3 डायलॉग में शामिल)

BJP का Game Plan: पासी समाज को साधने का मास्टरस्ट्रोक?

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी एक स्पेशल पासी लीडर्स लिस्ट तैयार कर रही है, जिसमें शामिल होंगे:

  • ज़मीन पर मजबूत चेहरे
  • शिक्षा और सामाजिक पहुंच वाले लोग
  • रसूख वाले प्रभावशाली व्यक्ति
  • वो लोग जो BJP में हैं लेकिन कम एक्टिव हैं

कहते हैं कि ये सब RSS की स्ट्रेटेजिक प्लानिंग का हिस्सा है। मतलब साफ है— पासी समाज को 2025 और 2027 में lightly नहीं लिया जाएगा।

आने वाले दिनों में क्या होगा?  

संगठन में जगह मिलेगी, आयोग में नियुक्तियां होंगी, मंत्री पद की चर्चाएं बढ़ेंगी और WhatsApp यूनिवर्सिटी में “पासी समाज के लिए बीजेपी का बड़ा फैसला” वाली breaking news पहले ही तैयार है। राजनीति में हर काम का एक ही मकसद— “संकेत भेजो… और वोट भरो।”

ऊदा देवी: राजनीति से परे, सम्मान का सही हक

सच कहें तो ऊदा देवी का सम्मान सिर्फ वोट के लिए नहीं, बल्कि उनके बलिदान और वीरता के कारण होना चाहिए। पर राजनीति वही है—जहाँ इतिहास भी वोट बैंक मैनेजमेंट में adjust किया जाता है।

ऊदा देवी पासी समाज का गौरव हैं। और यूपी की राजनीति में अब वह “आइकॉन + इमोशन + स्ट्रैटेजी + वोटर आउटरीच पैकेज” बन चुकी हैं।

आने वाले महीनों में पासी समाज के बड़े चेहरों को BJP में पद, सम्मान और पावर मिलते देख कर चौकना मत—ये सब पहले से लिखा स्क्रिप्ट का हिस्सा है।

1857 का वो ऐतिहासिक विद्रोह और ऊदा देवी का बलिदान

1857 का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (First War of Indian Independence) केवल राजाओं और नवाबों की लड़ाई नहीं थी, बल्कि इसमें समाज के हर तबके के लोगों ने हिस्सा लिया था, जिनमें वीरांगना ऊदा देवी पासी (Uda Devi Pasi) का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज है। वह अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह की महिला बटालियन की सदस्य थीं और नवाब की सेना में शामिल उनके पति मक्का पासी की शहादत (martyrdom) ने उन्हें ब्रिटिश सत्ता से लोहा लेने की प्रेरणा दी।

सिकंदर बाग़ का भीषण संहार 

यह घटना 16 नवंबर 1857 को लखनऊ की घेराबंदी (Siege of Lucknow) के दौरान हुई। लगभग 2000 भारतीय सिपाही लखनऊ स्थित सिकंदर बाग़ (Sikandar Bagh) में शरण लिए हुए थे, जिस पर ब्रिटिश फ़ौज ने हमला कर दिया। ब्रिटिश सेना का उद्देश्य बाग़ में मौजूद सभी विद्रोहियों का संहार करना था। ऊदा देवी को अपने पति मक्का पासी (जो 10 जून 1857 को इस्माईलगंज की लड़ाई में शहीद हुए थे) की शहादत का प्रतिशोध लेना था। उन्होंने इसी दिन अपना अंतिम युद्ध लड़ने का निश्चय किया।

पुरुष वेश में पेड़ पर चढ़कर लिया प्रतिशोध

प्रतिशोध की आग में, ऊदा देवी पासी ने एक साहसी कदम उठाया। उन्होंने पुरुषों के वस्त्र (men’s attire) धारण किए, अपने साथ एक बंदूक और पर्याप्त गोला-बारूद लिया, और सिकंदर बाग़ परिसर के एक ऊँचे पीपल के पेड़ (Peepal tree) पर चढ़ गईं। इस ऊँची पोजीशन से, उन्होंने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों पर लगातार फायरिंग शुरू कर दी। उनकी सटीक निशानेबाजी और अदम्य साहस का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अकेले ही 32 ब्रिटिश सिपाहियों और अफ़सरों को मौत के घाट उतार दिया। उनकी गोलीबारी इतनी सटीक और भयावह थी कि ब्रिटिश फ़ौज सिकंदर बाग़ में आसानी से प्रवेश नहीं कर पाई।

कैम्बेल ने हैट उतारकर दी श्रद्धांजलि

ऊदा देवी तब तक लड़ती रहीं जब तक उनका गोला-बारूद खत्म नहीं हो गया। जैसे ही वह पेड़ से उतरने लगीं, ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें गोली मार दी। इसके बाद जब ब्रिटिश सेना ने पेड़ के पास आकर देखा, तो वे यह जानकर स्तब्ध रह गए कि पुरुष वेश में लड़ने वाला वह निडर सिपाही कोई और नहीं, एक स्त्री थी। उनकी असाधारण वीरता से प्रभावित होकर, ब्रिटिश कमांडर काल्विन कैम्बेल (Sir Colin Campbell) ने भी शहीद ऊदा देवी को सम्मान देते हुए अपनी हैट उतारकर श्रद्धांजलि दी थी। यह उनकी बहादुरी का एक अप्रतिम प्रमाण है। सार्जेण्ट फ़ॉर्ब्स मिशेल और लंदन टाइम्स के संवाददाता विलियम हावर्ड रसेल ने भी अपनी रिपोर्टों में पुरुष वेश में एक स्त्री द्वारा अंग्रेजी सेना को भारी क्षति पहुँचाने की इस घटना का प्रमुखता से उल्लेख किया।

ऊदा देवी पासी की यह कहानी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दलित महिलाओं के अतुलनीय योगदान और बलिदान की एक महत्वपूर्ण गाथा है, जिसे आज भी सम्मान से याद किया जाता है। सिकंदर बाग़ परिसर में उनकी एक मूर्ति स्थापित की गई है जो उनकी अमर शौर्य गाथा को दर्शाती है।

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