
मुजफ्फरनगर के शुकतीर्थ में हुए संत समागम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भाषण जितना आध्यात्मिक था, उतना ही राजनीतिक तंज और स्पष्ट गुस्से से भरा हुआ भी। उन्होंने न केवल संतों की शिक्षाओं की बात की बल्कि सीधे-सीधे कैराना और कांधला जैसी घटनाओं को उदाहरण बनाकर स्पष्ट किया कि जब समाज संतों की राह से भटकता है, तब कैसी भयावह स्थिति बनती है।
सोनम का ‘कामाख्या दर्शन’ बहाना था, असली मंज़िल तो राजा को निपटाना था
संतों की राह से बनता है सुरक्षित समाज
मुख्यमंत्री ने साफ कहा, “संतों ने हमेशा जोड़ा है, तोड़ा नहीं।” उन्होंने कैराना-कांधला की बात को इसलिए जोड़ा ताकि जनता भूल न जाए कि अराजकता क्या होती है और किसकी देन होती है। उन्होंने कहा कि यह संतों की ही राह है जो विभाजनकारी ताकतों को समाज से दूर रखती है।
सतगुरु रविदास की विरासत और आध्यात्मिक चेतना
सीएम योगी ने संत रविदास जी की शिक्षाओं को याद करते हुए कहा, “जब देश विदेशी आक्रांताओं के नीचे दबा हुआ था, तब सतगुरु रविदास जी ने समाज में चेतना जगाई।”
सवाल यह उठता है कि क्या आज के राजनीतिक आक्रांता भी उतने ही खतरनाक नहीं हैं, जो समाज को जातियों और वर्गों में तोड़ते हैं?
विकास का वादा, लेकिन पिछली सरकारों पर वार
सीएम योगी ने घाट निर्माण, सड़क चौड़ीकरण, पार्किंग, सत्संग सभागार और सुंदरीकरण की घोषणाएं कीं। लेकिन तंज कसते हुए कहा — “बाबा साहेब को जिनका सम्मान मिलना चाहिए था, वो पिछली सरकारों ने नहीं दिया।”
भूल गए थे संविधान, याद दिलाया मोदी ने?
सीएम योगी ने कहा कि 1949 से 2015 तक किसी सरकार ने बाबा साहेब के नाम पर संविधान दिवस नहीं मनाया, लेकिन पीएम मोदी ने मनाया।
यह बात सीधा कटाक्ष थी उन दलों पर जो बाबा साहेब के नाम पर राजनीति तो करते हैं लेकिन संविधान की आत्मा से कोसों दूर रहते हैं।
पांच हजार साल का दावा — बाकी सब फेल?
मुख्यमंत्री ने कहा कि “दुनिया में कोई मज़हब बता दे जो पांच हजार साल का इतिहास रखता हो।” ये लाइन सुनकर आपको लगेगा कि मंच आध्यात्मिक था या किसी राजनीतिक रैली का ब्रीफिंग रूम?
लेकिन असल उद्देश्य साफ था — अपनी विरासत पर गर्व जताना।
जब संत मिलते हैं सरकार से, तो होता है ‘अच्छा’
योगी ने कहा, “जब अच्छी सरकार आती है और संतों का मार्गदर्शन मिलता है, तब अच्छा ही अच्छा होता है।”
यहां ‘अच्छा’ का मतलब सिर्फ आध्यात्मिक नहीं, बल्कि राजनीतिक “हमारी सरकार = सब अच्छा” का संदेश था।
आध्यात्मिक मंच से राजनीतिक संदेश
शुकतीर्थ का यह संत समागम आध्यात्मिक कम, राजनीतिक संकेतों का अड्डा ज़्यादा लगा। योगी आदित्यनाथ ने जहां एक ओर संतों की शिक्षाओं को महत्व दिया, वहीं दूसरी ओर पिछली सरकारों की नाकामी, कैराना की यादें और मोदी सरकार की उपलब्धियों का डंका भी बजाया।