
“सो जा बेटा, कब तक मोबाइल देखेगा?”
“बस मम्मी, फ़िल्म का क्लाइमैक्स चल रहा है… नेट स्लो है दिन में!”
इस डायलॉग से कोई भी इंडियन मिडिल-क्लास माँ रिलेट कर सकती है। बच्चे रातभर मोबाइल में, और मम्मी मन ही मन उस वाई-फ़ाई राउटर को कोसती हैं जो पूरे मोहल्ले को इंटरनेट दे रहा है — सिवाय अपने ही बच्चे को “नींद”।
वाई-फ़ाई: Wireless Fidelity या Wireless Frustration?
अब सुनिए एक झटका — वाई-फ़ाई का कोई “पूरा फॉर्म” नहीं है। वाई-फ़ाई एलायंस वालों ने नाम रख दिया, बस क्यूट लगता था इसलिए।
लेकिन काम इसका बड़ा ही इम्पॉर्टेंट है — ये आपकी डिवाइस को वायरलेस इंटरनेट से जोड़ता है। यानी तारों की गुलामी से आज़ादी, लेकिन अब लग रहा है कि नींद की भी गुलामी शुरू हो गई है।
Brain Impulses vs Wi-Fi Pulses: कौन जीतेगा?
हमारा ब्रेन इलेक्ट्रिकल इम्पल्स से काम करता है। वहीं वाई-फ़ाई जैसी चीज़ें Electromagnetic Field (EMF) छोड़ती हैं।
अब सवाल ये है — “जब दोनों ही इलेक्ट्रिक वेव्स हैं, तो कहीं टकरा न जाएं?”
“सीधे नुकसान का कोई सबूत नहीं है, लेकिन लॉजिक कहता है कि जितना एक्सपोजर कम हो, उतना बेहतर।”
तो समझिए, आपका वाई-फ़ाई कोई आतंकवादी नहीं, लेकिन बिना वजह उसे सिर के पास रखना भी अच्छा आइडिया नहीं है।
Sleep vs Stream: कौन जीतेगा रात की जंग?
रात में हमारे शरीर की वेव्स बदल जाती हैं। सोने की लहरें (Sleep Waves) एक्टिव होती हैं, और वहीं वाई-फ़ाई की वेव्स पार्टी में इनवाइट किए बिना घुस आती हैं।
वाई-फ़ाई स्लीप साइकल में इंटरफेयर कर सकता है। अच्छी नींद में रुकावट से अगला दिन “लैग” कर सकता है। और आप समझिए — अगर दिमाग़ ही बफरिंग करने लगे, तो दिनभर की मीटिंग हो या मैथ्स का टेस्ट — सब “नेटवर्क एरर” में चला जाएगा।
मोबाइल: आपकी जेब का माइक्रोवेव?
बात सिर्फ वाई-फ़ाई तक नहीं रुकती। हमारा प्यारा मोबाइल फ़ोन भी mini radiation zone है। ये माइक्रोवेव फ्रीक्वेंसी छोड़ता है जब ऑन होता है, तब भी। जब एयरप्लेन मोड में नहीं होता, तब भी और हां, जब आप उसे सिर के पास रखकर सोते हैं, तब भी तो अगर आपको लगता है कि फोन साइलेंट है, इसलिए शांत है — तो वो शांति थोड़ी रेडिएशन वाली हो सकती है।
ओवरएक्सपोज़र: थोड़ा लाइट, लेकिन ज़्यादा टाइट?
टेक एक्सपर्ट्स कहते हैं कि अभी तक कोई ठोस स्टडी नहीं है जो कहे कि वाई-फ़ाई से आपका ब्रेन “डेड जोन” में चला जाएगा। लेकिन ओवरएक्सपोज़र किसी भी चीज़ का बुरा होता है — चाहे वो स्क्रीन टाइम हो, मेसेज नोटिफिकेशन हो, या रिश्तेदारों की unsolicited सलाह।
डॉक्टर दिव्य ज्योति बताते हैं कि नींद ख़राब होने से कंसंट्रेशन गिरता है। लंबे समय में ये न्यूरोलॉजिकल इश्यू दे सकता है और कुछ मामलों में ट्यूमर जैसी गंभीर चीज़ों से भी जोड़ा गया है (though not conclusively proven)
तो क्या रात को वाई-फ़ाई बंद कर देना चाहिए?
अब ये सवाल FAQ से ज़्यादा मम्मी के ब्रह्मवाक्य जैसा हो गया है।

“रात को सब सो रहे हैं, तो इंटरनेट को भी सुला दो न!”
कोई भी रेडियो वेव, चाहे मोबाइल हो या वाई-फ़ाई, उसका ओवरएक्सपोज़र हेल्दी नहीं है।”
तो अगर आप 5G वाले मोबाइल से सो रहे हैं, और राउटर सिर के पास है, तो समझिए आप “रेडिएशन स्नान” कर रहे हैं।
देसी जुगाड़: Digital Detox का टाइम
कोई rocket science नहीं, बस कुछ देसी उपाय अपनाइए:
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सोने से पहले वाई-फ़ाई बंद कर दीजिए
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मोबाइल को सिर से दूर रखिए (किताब पास में रख सकते हैं, हां वो पढ़नी भी पड़ेगी)
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Airplane mode = शुद्ध निंद्रा
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हफ़्ते में एक दिन “No Screen Night” ट्राय करिए
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और अगर बच्चा नहीं मानता, तो वही करो जो सरिता जी सोच रही थीं — “इस वाई-फ़ाई का कुछ करना पड़ेगा!”
ब्रेन को भी नेटफ्लिक्स चाहिए, लेकिन “स्लीप मोड” में
रात में वाई-फ़ाई ऑन रखना कोई जानलेवा काम नहीं, लेकिन क्या आपकी नींद की क़ीमत एक और इंस्टाग्राम रील है?
ब्रेन को रीस्टार्ट चाहिए, न कि रिफ्रेश। कभी-कभी इंटरनेट को भी “गुडनाइट” बोलिए। शायद आपकी नींद कहे — “थैंक यू फॉर नॉट बफरिंग!”
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