
किंडरगार्टन बच्चों के स्कूल जीवन का पहला कदम है। यहां उन्हें एबीसी के साथ-साथ बी-हेव और सी-क्लीन भी सिखाया जाता है। लेकिन हाल ही में टीचर्स की शिकायत है कि कुछ पेरेंट्स मान बैठे हैं कि स्कूल में भेज दो, अब हमारी छुट्टी!
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शिक्षण का तरीका – खेल, कहानी और गोंद में लिपटी पढ़ाई
यहां बच्चे सीखते हैं:
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खेलते हुए
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ड्राइंग बनाते हुए
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मिट्टी, पानी और रंगों से मस्ती करते हुए
लेकिन जब बच्चा गंदी नैपी, उलझे बाल और बेस्वाद टिफिन लेकर आए – तो टीचर को लगे कि ये क्लासरूम नहीं, किचन और वॉशिंग मशीन का ब्रेकडाउन है!
बात सिर्फ पढ़ाई की नहीं, पेरेंटिंग की भी है
किंडरगार्टन में टीचर सिर्फ शिक्षक नहीं, आधी नर्स, आधी थैरेपिस्ट और पूरा धैर्य होती हैं। लेकिन जब पेरेंट्स:
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बासी खाना डाल देते हैं
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बोतल में 2 दिन पुराना पानी भरकर भेजते हैं
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नैपी नहीं बदलते
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कपड़े ऐसे भेजते हैं जैसे ‘पार्टी के बाद की हालत’
तो टीचर सोचती हैं: “बच्चे तो भगवान का रूप हैं, पर पेरेंट्स भगवान भरोसे क्यों हैं?”
किंडरगार्टन का असली उद्देश्य – स्कूल के लिए तैयार करना, लेकिन घर से भी तो तैयार आना चाहिए!
सामाजिक कौशल, संवाद, सहयोग और स्वच्छता – ये सब बच्चे वहीं सीखते हैं जहां इनका अभ्यास हो। स्कूल में तो प्लेटफॉर्म मिलता है, लेकिन ट्रेनिंग की शुरुआत घर से होनी चाहिए।
किंडरगार्टन केवल बच्चों के लिए नहीं, पेरेंट्स के लिए भी ‘Back to Basics’ का समय है। शिक्षा के संग सफाई, व्यवहार के संग बॉटल की सफाई भी उतनी ही जरूरी है। वरना बच्चा तो सीखेगा, लेकिन टीचर WhatsApp ग्रुप में “कुछ तो शर्म करो” टाइप स्टेटस लगाने लगेंगी।
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