
भारत के लोकतंत्र की सबसे मजबूत इकाई अगर कोई है, तो वह ग्राम सरकार है। देश की लगभग 70% आबादी गाँवों में रहती है, ऐसे में यदि भारत को विकसित बनाना है, तो गाँवों को सशक्त करना अनिवार्य है।
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ग्राम सरकार का उद्देश्य केवल स्थानीय प्रशासन नहीं, बल्कि लोगों को नीतियों और विकास में भागीदारी देना है। लेकिन आज भी इसकी राह में कई बाधाएँ हैं।
भारत में ग्राम सरकार कैसे बनती है?
भारतीय संविधान के 73वें संशोधन अधिनियम, 1992 के बाद ग्राम सरकार को संवैधानिक दर्जा मिला। इसके अंतर्गत तीन स्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई:
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ग्राम पंचायत (गाँव स्तर)
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पंचायत समिति (ब्लॉक स्तर)
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जिला परिषद (जिला स्तर)
ग्राम पंचायत में गाँव के लोग प्रत्यक्ष मतदान से ग्राम प्रधान (सरपंच) और वार्ड सदस्य चुनते हैं। इनका कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
चुनौतियाँ
1. वित्तीय स्वतंत्रता की कमी
ग्राम पंचायतों के पास सीमित आय के स्रोत हैं। उन्हें राज्य और केंद्र सरकार की ग्रांट्स पर निर्भर रहना पड़ता है, जो समय पर नहीं मिलती और कभी-कभी राजनैतिक प्रभाव में बंटती हैं।
2. शिक्षा और जागरूकता की कमी
कई पंचायत प्रतिनिधि अभी भी शासन, वित्तीय प्रबंधन और योजना निर्माण की जानकारी से वंचित हैं। इससे पंचायतों का प्रभावी संचालन बाधित होता है।
3. भ्रष्टाचार और पारदर्शिता की कमी
पंचायत फंड के उपयोग में कई बार घोटालों और भाई-भतीजावाद की खबरें सामने आती हैं। सोशल ऑडिट या पारदर्शी प्रणाली अभी पूरी तरह लागू नहीं हो पाई है।
4. राजनीतिक हस्तक्षेप
स्थानीय स्तर पर राजनैतिक दलों का हस्तक्षेप ग्राम सरकार को स्वतंत्र निर्णय लेने से रोकता है।
5. डिजिटल तकनीक का अभाव
‘डिजिटल इंडिया’ के बावजूद, ग्राम पंचायतों में इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म का समुचित उपयोग अभी भी नहीं हो रहा।
मोदी सरकार में क्या बदलाव हुए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने ग्रामीण विकास और ग्राम सरकार को सशक्त बनाने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं:
e-Gram Swaraj पोर्टल
इस पोर्टल के माध्यम से पंचायतों को डिजिटल रूप से जोड़ा गया है। पंचायत बजट, योजनाएँ और रिपोर्ट्स अब ऑनलाइन उपलब्ध हैं।
SVAMITVA योजना
गाँवों की जमीनों की डिजिटल मैपिंग की जा रही है ताकि ग्रामीणों को मालिकाना हक मिले और संपत्ति विवाद समाप्त हों।
भारत नेट योजना
हर पंचायत को हाई-स्पीड इंटरनेट से जोड़ने के लिए यह योजना चलाई गई है। इससे डिजिटल सेवाओं तक गाँव की पहुँच आसान होगी।
ग्रामोदयो से भारत उदयो अभियान
गाँवों में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता और रोजगार पर विशेष ध्यान देने के लिए यह पहल शुरू की गई।
अभी कहाँ हैं समस्याएँ?
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पंचायत फंड में पारदर्शिता की कमी
डिजिटलीकरण के बावजूद, फंड की निगरानी और जवाबदेही की प्रणाली अब भी कमजोर है। -
महिलाओं की भागीदारी केवल औपचारिक
आरक्षण के बावजूद महिलाओं को निर्णय में बराबर स्थान नहीं मिल रहा है। -
सामाजिक भेदभाव की उपस्थिति
आज भी दलित या पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों को उपेक्षित किया जाता है, जिससे सामाजिक न्याय की अवधारणा कमजोर होती है। -
तकनीकी प्रशिक्षण का अभाव
पंचायत सचिव और ग्राम प्रधानों को डिजिटल प्रणाली और प्रशासनिक प्रक्रियाओं की प्रशिक्षण आवश्यकता है।
आगे क्या करने की ज़रूरत है?
ग्राम पंचायत को अधिक वित्तीय स्वतंत्रता दी जाए।
सभी पंचायत प्रतिनिधियों को अनिवार्य प्रशिक्षण दिया जाए।
डिजिटल साक्षरता को हर गाँव में पहुँचाया जाए।
महिलाओं और युवाओं को पंचायत में नेतृत्व की भूमिका दी जाए।
सामाजिक ऑडिट और लोक शिकायत प्रणाली को मजबूती से लागू किया जाए।
ग्राम सरकार लोकतंत्र की असली जड़ है। मोदी सरकार ने कई अहम बदलाव किए हैं लेकिन ज़मीनी स्तर पर सुधार की गति और मजबूत करनी होगी। यदि भारत को विश्वगुरु बनाना है, तो सबसे पहले गाँवों को मजबूत करना होगा।